SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७६ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। त्यक्त्वा सर्वपरिग्रहं कुगतिदं श्रीसंघभक्त्युत्सवै र्बाणाक्ष्यङ्कधराब्दकेऽत्र सुधिया चक्रे क्रियोद्धारकम् । मर्यादां नवधां च पूज्ययतिभिः स्वीकारयित्वाऽऽनतैः, सद्यत्नं चरणेऽथ यस्य करणे स्तुत्यं ह्यभूत्पालने ॥ सच्छिष्यैर्विचचार सार्धमवनौ यस्योपदेशादभूदुद्धारं च जिनौकसामभिनवाः सद्धर्मशालादयः । ज्ञानागारजिनेश्वराञ्जनशलाकाहत्प्रतिष्ठाः कृता, भव्येभ्यो व्रतयुग्मकं च सहितं सम्यक्त्वरत्नं ददौ ।। ___ यहाँ पूर्ण नम्रीभूत श्रीधरणेन्द्रसरिजी और यतिलोगोंसे गच्छ सुधाराकी नव मर्यादाओंको स्वीकार करवा कर दुर्गति देने वाला श्रीपूज्य संबन्धी सब परिग्रहका त्याग कर सुबुद्धिसे गुरुश्रीने सं० १९२५ आषाढ़ शुक्ला दशमीके रोज श्रीजावरा श्रीसंघकी ओरसे अति भक्ति पूर्वक महोत्सबके साथ श्रीप्रमोदरुचिजी श्रीधनविजयजी एवं शिष्यों युक्त क्रियोद्धार किया । उसके बाद आपश्रीका चरण ७० सित्तरि और १-प्राणातिपातादि पाँच महाव्रत ५, दशविध यतिधर्म १५, सत्तरह प्रकारके संयम ३२, दश प्रकारका वैयावृत्त्य ४२, नव प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्ति ५१, ज्ञानादि त्रिक ५४, बारह प्रकारका तप ६६ तथा क्रोधादि चार कपायका जय ७० ये चारित्र के सित्तर भेद जानना ।
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy