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________________ जैनाचार्य - श्रीमद् - विजयराजेन्द्रसूरीश्वराणां सार्थगुणाऽष्टकम् । शार्दूलविक्रीडित छन्दसि - सलाजननं पुरेऽत्र भरते यस्यौसवंशे शुभे, यस्याऽम्बाऽजनि केसरी ऋषभदासश्चेभ्यराड् यत्पिता बाल्येऽमोदयताऽखिलानपि गुणैर्यो रत्नराजः शुभैस्तं भव्याः प्रणमन्तु सूरिगुणिनं राजेन्द्रसूरीश्वरम् | १| भव्यो ! जिनका इस संसार में रमणीय भरतपुर नामक शहरके अन्दर शुभ समय उत्तम ओसवंश में सं० १८८३ की सालमें जन्म हुआ, उनके पिता श्रेष्ठिवर्य - ऋषभदासजी और माता सुशीला केसरी बाई थी । गर्भावासमें मातुश्रीको रत्नका शुभ स्वम आनेके कारण महोत्सव पूर्वक सहर्ष आपश्रीका शुभ नाम ' रत्नराज ' रक्खा गया । ये रत्नराजजी बड़े ही भाग्यशाली होने की वजहसे बाल्यावस्था में ही अपने मनोहर गुणोंसे सबको अतीव खुश करते थे । इसलिये सज्जनो ! आप लोग आचार्यके छत्ती सगुण युक्त - जैनश्वेताम्बराचायश्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजको सदैव नमस्कार करो ॥ १ ॥ यो वैराग्यसुरञ्जितोऽल्पवयसि श्रुत्वोपदेशं गुरोब्रह्मास्याम्बररत्न भूमिसमिते संसारपीडापहाम् ।
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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