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________________ १०६ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी । ३५-- प्रश्नोत्तराणि, मक्षीतीर्थ- संघनिर्गमश्च प्राज्ञोऽत्र गुरुमप्राक्षीन्, महेता - पन्नालालकः । परीषहोदयः कः स्यादुदये कस्य कर्मणः ॥ ४०४ ॥ दर्शनमोहनीयेन, दर्शनस्य परीषहः । ज्ञानावरणतः स्यातां प्रज्ञाऽज्ञाने परीषहौ ॥ ४०५ ॥ 5 विघ्नकर्मोदयेऽलाभ-श्चैवं चारित्रमोहकात् । आक्रोशाsरतिसत्कार - ललनाऽचेलयाचनाः । ४०६ ॥ नैषेधिकी च सप्तैते, वेदनीयात्वमी मताः । चर्याशय्यातृणस्पर्श-क्षुत्पिपासावधाऽऽमयाः || ४०७|| शीतोष्णमलदशास्तु, रुद्राः श्राद्ध ! परीषहाः । शिवार्थिभिः सुनिर्ग्रन्थैः, सोढव्याः कर्कशा मुदा ॥ फिर खाचरोदके चौमासेमें सुविचक्षण प्रज्ञाचक्षु श्रावकवर्य महेता - पन्नालालजी के गुरूसे पूछे हुए प्रश्नोत्तर लिखते हैं - किस कर्मका उदय होने पर कौन परीषह उदय होता है ? ॥ ४०४ ॥ दर्शनमोहनीय कर्मके उदयसे दर्शन - सम्यक्त्वका १ परीषह उदय होता है। ज्ञानावरणी कर्मके उदय आने पर ज्ञान २ और अज्ञान ३ ये दो परीपह होते हैं ॥ ४०५ || अन्तराय कर्मके जोर से यथेष्ट लाभ ४ नहीं होता, एवं चारित्रमोहनी के उदय से आक्रोश ५ अरति ६ सत्कार ७ स्त्री ८ अचेल ९ याचना १० और नैषेधिकी ११ ये सात
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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