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________________ श्रीराजेन्द्र गुणमञ्जरी । पाखण्डियों का पाखण्ड खण्डन करनेसे आपश्रीका ही सुयश विस्तृत हुआ || २६७ ।। कहावत भी है कि जो सूर्यके सामने धूलि डालता है वह पीछी उसीके ऊपर आकर पड़ती है एवं जो खड्डा खोदेगा वही उसमें पड़ेगा || २६८ ।। ७४ लूणावच्चान्दमल्लेन, खाचरोदनिवासिना । व्यज्ञापि बहुधाऽथैवं योजिताञ्जलिना गुरुः ॥ २६९॥ मगसी - पार्श्वनाथस्य, तीर्थयात्रां विधापय । पूज्याssगतोऽस्मि तद्धेतोः, कृपयाssगम्यतामितः तद्विज्ञप्तिं समाधाय, गुरुराजोऽपि तत्पुरम् । शिष्य श्रेष्ठैः समं शीघ्र -मागच्छल्ला भहेतवे ॥ २७९ ॥ ततः कृत्वा प्रयाणं स, मुहूर्तेन हितेच्छया । सूपदेशं ददत्संघ, प्रतिग्रामं क्रमेण च ॥ २७२ ॥ चैत्र कृष्णदशम्यां च वेदबाणनिधीन्दुके । ववन्दे श्रीजिनं पार्श्व, संधैः सार्धं गुरुर्गुणी ॥२७३ || बाद खाचरोद - निवासी लूणावत्-सेठ चांदमलजीने हाथ जोड़कर गुरुजी को इस प्रकार बहुत प्रार्थना की ॥ २६९ ॥ हे पूज्यवर्य ! हमें तीर्थ मक्षी पार्श्वनाथजीकी यात्रा करावें उसी हेतु मैं आपश्रीसे अर्जके लिये आया हूँ वास्ते कृपाकर पधारें ॥ २७० ॥ गुरुमहाराज भी उस अर्जीको मान देकर श्रेष्ठ शिष्यों युक्त यात्रालाभके लिये जल्दी ही खाचरोद पधारे || २७१ || फिर शुभ मुहूर्त्तसे प्रस्थान कर हितकी
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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