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श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। इस संघ में गुरुमहाराजके वचनसे दो लाख रुपये व्यय हुए । इस प्रकार धर्मोन्नति करते हुए गुरुदेवने स्थान स्थानपर उत्तम यशको प्राप्त किया ॥ २४४ ॥ . श्रेष्ठिवर्य-पौरवाल-मेघाजीके सुपुत्र वनाजी हर्षचन्द्रजीने प्रसिद्ध शिवगंजमें त्रिशिखरी जिनेन्द्र भगवानका मंदिर बनवाया ॥२४५।। फिर उसकी संवत् १९४८ माघ सुदी ५ के रोज मूलनायक श्रीअजितनाथ आदि अनेक जिनबिम्बोंकी गुरुजीने अञ्जनशलाका युक्त प्रतिष्ठा की ॥२४६॥ उस मौके पर धर्मद्वेषी लोकोंने बहुतसे उपद्रव खड़े किये, और राज्यमें चुगली भी खाई कि-राजन् ! मुहूर्त अच्छा नहीं है ॥२४७॥ लेकिन उनके उपद्रवका जोर शोर केवल शरद ऋतुके वादलके समान व्यर्थ ही हुआ, उलटे वे लोग सजनों से पग २ पर अपमान के शिरपावको प्राप्त हुए ॥ २४८ ॥ यथाविधि वराऽभूत्सा, महानन्दैश्च सूद्धवैः । जयं लेभे गुरुस्तत्र, सुमुहूर्त्तप्रभावतः ॥२४९ ॥ तथा गुरूपदेशाच, वन्नाजीश्रेष्ठिनाऽमुना। न्यायोपार्जितवित्तेन, धर्मशालाऽपि कारिता ॥२५०॥ श्रीआहोरे चतुर्मास्यां, धर्मोद्योतस्त्वभूद् बहुः । श्राद्धश्राद्ध्यस्तदा जाता, व्रतसम्यक्त्वधारकाः॥२५१ निम्बाहेडापुरे साधं, चर्चाऽभूल्लुम्पकेन च। . नन्दरामं विजित्यैष, चक्रे षष्टिगृहान् स्वकान् ।२५२।