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राग द्वेष नाठा नहीं क्रोधादिक वली चार ॥ तपस्यादिकथी शुं हुवे परनिंदा नहि पार ॥ ५ ॥ रईयत सब राजी रहे घटे न रावतमान || उपज वधे ज्युं राजकी सो प्रधान प्रमान ॥ ६॥ रस अनरस समज्या विना करे प्रेमनी वात ॥ विछुमंत्र जाणे नहि साप उपाडे हाथ ॥ ७ ॥ राज मिले पैसो मिले सब सुख मिलना सहेल ॥ मित्र रत्न संसारमें मिलना है मुश्कील ॥ ८ ॥ रे मन तज अब श्यामता केश करत उपदेश ॥ हम बदले तुम युं रहे एही बडो अपशोश ॥ ९ ॥
रातें वेला सूईने वेला उठे जेह ॥ विद्याधन वाधे धर्म रहे निरोगी देह ॥ १० ॥ लोभी नर धन संग्रहे अजाण बेशे राज ॥ भार उपाडे बलदीयो ए सहु परने काज ॥ १ ॥ लाखो पण अवगुण तजी एक ग्रहे गुण धीर ॥ सज्जन हंस सम लेखीयें नीर तजी पीये क्षीर ॥ २ ॥ लिखना पडना चातुरी ए सब बातां सहेल ॥ काम दमन मन वस करन गगन चढन मुश्केल ॥ ३ ॥