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धर्म करतां स्वर्ग सुख धर्म करत निर्वाण | धर्म मर्म जाण्या विना नर तिरियंच समान ॥ २ ॥
धर्म ध्यान कीधो नही राख्यो मन अभिमान ॥ एक आंख तो फूट गई होशे डूजी समान ॥ ३ ॥ धर्म नियम पाल्या विना प्रभु भजवा ते व्यर्थ ॥ औषध खातां शुं थशे जो पाले नहि पथ्य ॥ ४ ॥ धन यौवन कछु ना रहे ना रहे गामने ठाम ॥ सज्जन जगमें यश रहे कर दो किशीका काम ५॥ धन मेलवतां दुःख घणुं साचवतां पण दु:ख ॥ आवेलं फरी जाय तो जाय समूलुं सुख ॥ ६ ॥ धन दईने तन राखीयें तन दई राखो लाज ॥ धन दो तन दो लाज दो एक प्रेमने काज ॥ ॥ धूता होय सुलख्खणा वेश्या होय सलज्ज ॥ खारा पाणी निर्मला ए त्रणे होय अकज्ज ॥ ८ ॥ धीरा धीरा रावतां धीरे सब कुछ होय ॥ माली सींचे चोघणा रुत विण फल न होय ॥ ९ ॥ धीरजशें निज धाममें हाथी सवा मण खाय ॥ टुकडा एकके कारणे श्वान घरोघर जाय ॥ १० ॥