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________________ ( ४५५ ) आवरदा ओछी रही प्रभुथी कीयो न प्रेम ॥ खाई गया तीड खेत्रने पछी पस्तावुं केम ॥ २७ ॥ इच्छे जेवुं अवरनुं तेवुं आपणुं थाय ॥ मानो नही तो करी जुओ जेथी तरत जणाय ॥ १ ॥ इच्छे सुख डाइथी ते क्यांथी मलनार ॥ आकतणुं बी वावतां आंबो नहिज थनार ॥ २ ॥ इच्छे भुंडुं अवरनुं तेनुं हुं थनार ॥ अन्य काज खाडो खणे तेमां ते पडनार ॥ ३ ॥ उजड खेडा फिर वशे निर्धनीयां धन होय ॥ गया न यौवन संचरे मुवा न जीवे कोय ॥ १॥ उंचा कुल किश कामका ज्यां नही प्रभुको नाम ।। इशशे तो शूकज भला जश मुख बोले राम ॥ २ ॥ उपजे मति जन मन विशे जेहवं भावी होय ॥ शुद्ध मार्ग सूजे नही कोइ समजावे तोय ॥ ३ ॥ उघाडा दीवाविशे पतंग जेम जपलाय ॥ तिभ नारीना नेत्रमां भ्रष्ट जनो भरमाय ॥ ४ ॥ उंचूं जोतो बलदीओ नीचूं जोती नार ॥ एकल हड्डो वाणीओ ए व्रण दूर निवार ॥ ५ ॥
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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