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________________ ( ४५३ ) आव्युं नहि भयः ज्यां लगे बीक राखवी- वित्त ॥ पासे आव्युं जोइने कर जेम ऊचित्त ॥ ९ ॥ अति घणुं नवि ताणीयें ताण्ये त्रूटी जाय ॥ चुदया पछी जो सांधीयें विचें गांठ रही जाय ॥ १० ॥ अवगुण उपर गुप्ण करे ए सज्जन अभ्यास ॥ चंदनने परजाल आपे सरस सुवास ॥ ११ ॥ आलसुने उपचार नहि लोभीने नहि. सुख ॥ कायरने हिमत नहि संतोषीने नहि दुःख ॥ १२ ॥ एक एक अक्षर वडे भणे ग्रंथ विचार ॥ आँटे आटे काप पैडुं कोश हजार ।। १३ ॥ औषध छे सवि, सेमना उपाय सहुना होय 11औषध नहिज स्वभावनुं करी शके जग कोय ॥ १४ ॥ अतिभलुं नहीं वरषकुं अतिभलुं नही धूप ॥ अतिभलुं नही बोलवु अतिभलं नहि चूप ॥ १५ ॥ आतम अनुभव वासना कोईक नकली रीत ॥ नाक न पसरे- वासना कान करे प्रतीत ॥ १६ ॥ आप आपनी मरजी गरज जगत जप्पाय ॥ बगर दरद घर वैद्य ने निर्थे नहि कोइ जाय ॥ १७ ॥
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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