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________________ (३४) मावार्थ-राजा पोते कदाच अविद्वान् होय छतां विद्यावृद्ध पुरुषनी सेवा करवाथी ते परम संपत्तिने पामे छे. जुओ, जलनी समर्मापे रहेल वृक्ष सदा रमणीयज रहे छे. ९७ अनुगंतुं सतां वर्त्म कृत्स्नं यदि न शक्यते। स्वल्पमप्यनुगंतव्यं मार्गस्थो नाक्सीदति॥९८॥ भावार्थ--सज्जन पुरुषोना मार्गनुं सर्वथा कदाच अनुगमन न थइ शके तो किंचित् पण तेनुं अनुकरण करवु योग्य छे. कारण के मार्गस्थ पुरुष सदिातो नथी ९८ अजायुद्धमृषिश्राद्धं प्रभाते मेघडंबरम् । दंपत्योः कलहश्चैव परिणामे न किंचन ॥ ९९ ॥ __ भावार्थ-अजा (बकरा) ओनुं युद्ध ऋषियोनुं श्राद्ध, प्रभाते वरसादनो आडंबर अने दंपतीवच्चे कलह-एर्नु परिणाम कांड न मळे. ९९ अतिदानाद् बलिर्बद्धो ह्यतिमानात्सुयोधनः। विनष्टो रावणो लौल्या-दति सर्वत्र वर्जयेत् १०० __ भावार्थ-अतिदान थी बलिराजाने बंधावू पडयुं अतिमानथी सुयोधन हेरान थयो अने अति लोलुपता
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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