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________________ ( ३६५) भावार्थ-लोभीजनोने याचक शत्रु समान लागे छे, चोरजनोने चंद्रमा शत्रु जेवो लागे छे, कुलटा बीओ पोताना पतिने शत्रु समान गणे छे अने मूर्ख जनोने बोध आपनार (उपदेशक ) ते कट्टाशत्रु समान भासे छे. १४ व्यवसायं विना नार्थो न श्रुतार्थो धियं विना। न वारिदं विना वृष्टिन पुष्टिर्भोजनं विना ॥१॥ भावार्थ-व्यवसाय विना द्रव्यनो लाभ न थाय, बुद्धि विना शास्त्रार्थनो बोध न थाय, मेघ विना वृष्टि न थाय अने भोजन विना पुष्टि न थाय. १ वध्वालानं विना जात-तारुण्यारण्यचारिणः । गजा इव भवत्येवां- गजा न्यायदुमद्रुहः॥२॥ भावार्थ-तारुण्यरूप अरण्यमा संचरनारा पुत्रो, स्त्रीरूप आलानस्तंभ विना हाथीओनी जेम न्यायरूप वृक्षनुं उन्मूलन करनारा नीवडे छे. २ विचारपयसां कामगवी-र्वाचो महात्मनाम् । दूषयंत्यो न मे नार्यो मार्जार्य इव संमताः॥३॥
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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