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( ३५३) भावार्थ-हे जीभलडी ! तु मोजन अने वचनर्मा मर्यादा राख. कारण के वचनमां मर्यादा न राखवाथी प्राणनो संदेह वखतसर उपस्थित थाय छे अने भोजनमां मर्यादा न राखवाथी अजीर्ण-दोष उत्पन्न थाय छे. १ राजा वेश्या यमो वह्नि-स्तस्करोबालयाचकः । परदुःखं न जानाति ह्यष्टमो ग्रामकंटकः॥२॥
मावार्थ-राजा, वेश्या, यम, अग्नि, तस्कर (चोर), बाळक, याचक अने गामनो मुखी पटेलीओ ए आठ परना दुःखने जाणता नथी. २ राजपत्नी गुरोः पत्नी मित्रपत्नी तथैव च। पत्नीमाता स्वमाता च पंचैता मातरः स्मृताः३
भावार्थ-राजपत्नी, गुरुनी पत्नी, मित्रनी पत्नी, पोतानी स्त्रीनी माता तथा पोतानी माता-ए पांच मातासमान कहेल छे. ३
रथस्यैकं चक्रं भुजगयमिताः सप्त तुरगा निरालंबो मार्गश्चरणविकलः सारथिरपि ।