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शास्त्रे वादभयं गुणे खलभयं काये कृतांताद्भयं सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैराग्यमेवाभयम् ८
भावार्थ - भोगमां रोगनो भय छे, सुखमां क्षयनो भय छे, शरीरने यमनो भय छे, मौनमां गरीबाईनो भय छे; धनने राजानो भय छे, बळने शत्रुनो भय छे, रूपमां जरानो भय छे, शास्त्रमां वादनो भय छे, गुणोने खलोनो भय छे. अहो ! जगतमां ज्यां जुओ त्यां तमाम वस्तुओ भयथी भरेली छे, मात्र एक वैराग्यज अभय ( भयरहित ) छे. ८
भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्तास्तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः । कालो न यातो वयमेव यातास्तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः ॥ ९ ॥
भावार्थ - अहो ! भोगो तो भोगवाया नहि, पण अमे पोतेज भोगवाई गया, तप तो तप्युं नहि, पण अमे पोतेज तप्त थई गया, काल तो न गयो, पण अमे पोतेज चालता थया अने तृष्णा तो जीर्ण न थई, पण अमे पोतेज जीर्ण थई गया. ९