SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २४२ ) भावार्थ-फूलोथी पण युद्ध न करवू, तो पछी तीक्ष्ण बाणोथी तो युद्ध थईज केम शके ? कारण के युद्धमा विजयनो तो संदेह होय छे, पण तेमां प्रधान पुरुषोनो क्षय तो थायज छे. ४ पंडितोऽपि वरं शत्रु-र्न मूो हितकारकः । वानरेण हतो राजा विपचौरेण रक्षितः॥५॥ भावार्थ-पंडित शत्रु पण सारो अने मूर्ख हितकरनार पण सारो नहि. जुओ, शास्त्रमा वात छे के वानरे राजानो नाश कर्यो अने चोर ब्राह्मणे तेने बचाव्यो. ५ प्रमदा मदिरा लक्ष्मी-विज्ञेया त्रिविधा सुरा। दृष्टैवोन्मादयत्येका पीता चान्यातिसंचयात्॥६॥ भावार्थ-स्त्री, मदिरा ( दारु ) अने लक्ष्मी एम त्रण प्रकारे सुरा (दारु ) कहेल छे. प्रथम मात्र जोवाथीज उन्माद उपजावे छे, बीजी पान करवाथी अनेत्रीजी अतिसंचयथी उन्माद उपजावे छे. ६
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy