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( २४०) मावार्थ-जे कोईनी उपर द्वेष करता नथी, को. ईनी पासे जे कंइ मागता नथी, परनिंदा जे करता नथी अने बोलाव्या विना जे आवता नथी, तेथी ते पाषाणो ( पत्थराओ) पण देव कहेवाय छे. ( मनाय छे). ७६ नृणां धुरि स एवैको यः कश्चित्त्यागपाणिना। निर्मार्टि प्रार्थनापांसु-धूसरं मुखमर्थिनाम् ॥७७॥
भावार्थ-जगतमा सर्व पुरुषो करता अग्रेसर तेज एक पुरुष छे, के जे पोताना दान देवाना हाथथी, प्रार्थनारूप धूळथी कंईक झांखा थयेल याचकोना मुखने साफ करे छे. ७७ पदे पदे निधानानि योजने रसकूपिका। भाग्यहीना न पश्यति बहुरत्ना वसुंधरा ॥१॥
भावार्थ-पगले पगले निधानो होय छे, अने यो जने योजने रसकुंपिका होय छे, पण भाग्यहीन जनो ते जोई शकता नथी. कारण के बहुरत्ना वसुंधरा कहेवाय छे. १