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________________ ( २०१ ) उत्पन्न करे छे, भोगो रोगोना स्थान छे अने कुटुंब अनेक प्रपंचकोटीथी कटु छे. ३ धन्यास्ते मुनयो धीराः शीलसंनाहशालिनः । योषावाग्विशिखा येषां हृदयं व्यथयंति न ॥४॥ भावार्थ - शीलरूप बख्तरथी सुशोभित एवा धीर मुनिओज धन्य छे, सदा सुखी अने के जेमना हृदयने स्त्रीन्स वचनरूप बाणो भेदी शकता नथी. ४ धर्मः स्वर्मणिसंकाशो धर्मः शर्मवनीघनः । धर्मो वर्ष द्विषां भीतौ धर्मः कर्महतिक्षमः ॥ ५॥ 1 भावार्थ - धर्म - ए चिंतामणि रत्न समान छे, धर्मए सुखरूप वनने मेघ समान छे, धर्म - ए रिपुसंकटमां बख्तर समान छे अने बधा अशुभ कर्मोंने चकचूर करवाने ते समर्थ छे. ५ धनं कापि यशः कापि पुण्यं कापि यथाक्रमम् | नीचमध्योत्तमैः प्रार्थ्य - मुपकारतरोः फलम् ६ भावार्थ-नीच जनो उपकाररूप वृक्षना फळरूप धनने मागे छे, मध्यम जनो कंइ यशने अने उत्तम जनो पुण्यनेज मागे छे. एटले इच्छे छे. ६
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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