________________
(१३३) गेहं दुर्गतबंधुभिर्गुरुगृहं छात्रैरहंकारिभिर्हदें पत्तनवंचकैर्मुनिजनैःशापोन्मुखैराश्रमान्। सिंहायैश्च वनं खलैर्नृपसभां चौरैर्दिगंतानपि संकीर्णा न्यवलोक्य सत्यसरलः साधुः क विश्राम्यति २७
भावार्थ-घर-गरीब बांधवोथी व्याप्त छ, गुरुर्नु भवन-अहंकारी विद्यार्थीओथी व्याप्त छ, हाट-नगरना धूर्तजनोथी व्याप्त छ, आश्रमो-शाप आपवामां तत्पर अवा मुनिजनोथी व्याप्त छ, सिंहादिक क्रूर प्राणीओथी वन व्याप्त छ, खलजनोथी राजसमा व्याप्त छे अने चोरलोकोथी वारे दिशाओ व्याप्त छए प्रमाणे सर्वत्र संकीर्णता जोइने सत्य-सरल साधुजनो क्या विश्राम लेशे ? २७ गौरवं प्राप्यते दाना-नतु वित्तस्य संचयात् । स्थितिरुच्चैः पयोदानों पयोधीनामधःस्थितिः२८
भावार्थ-धननुं दान आपवाथी गौरव प्राप्त थाय छे, परंतु तेनो संचय करवाथी गौरव प्राप्त थतुं नथी. जुओ, मेघ जळनो व्यय करवाथी उंचे रहे छे अने