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________________ प्रकांतमणिना उपर रहेला बत्र रूप कळशमांथी बुधना जेवुं जळ प्रजुना मस्तकपर पाने बे. अने प्रांगणांनी मणिमय भूमिमां पमेला तारायना प्र तिबिंबधी दिव्य पुष्पोनो उपहार करे बे. २५ विशेषार्थ - आकाशमा रहेला चंडनुं प्रतिबिंव प्रजुना मस्तकपर र हेला छत्रकलशमां परे बे. ते छत्रकलश चंद्रकांत मणिनो रचेन बे तेथी तेनी उपर चंद्रनी कांति पडवाथी ते करे बे. ते उपर कवि उत्प्रेक्का करे ने के, चंद्र आकाशमा रहिने प्रजुनी उपर दूधनी धाराथी स्नात्रविधि करे बे. स्नात्र विधि करवामां जेम कलश वमे जलधारा करवी जोइए ने पुष्पनो उपहार चाववो जोइए म अहिं चंदना कीरणो जालीना बिषोमांथी थइने चंप्रकांतमणिना छत्र उपर पमे बे, तेथी बत्रमाथी नीकळता करणा व चंद्र
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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