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શ્રી મોહતલાલજી જૈન જ્ઞાતભંડાર - સુરત पो.नं. २५, प्रत नं. १०१, पत्र -८, सस्तन
પ્રથમ પત્ર
श्रीजिनाय नमः मक्तिकरकै झरकहेत तेन मैसूरदेवता नरके कहतां मनुष्यतां पूर्ण निरीचित राघर विषे मिरिजै लक्ष्मी ॥६॥ श्रीजिनाय नमः ॥ प्रतिश्वरन मिरसुरनर सिरिसे दरकिरल२५यस सिरियं विधिकारक है वारनंग तथा बीस वरस गये श्री धर्मास्वामी मुक्तक
नमीनमस्कारथानुम हा बार नोपयजेच पती नमस्कार करनैकां इक हस्युं सूत्र नैज्वा पैति नमिन सिरिबीरपयं बुचे सुयहा ततः जम्मा तीस बरसोपासियो जंबू चरमबेहड तावरेश्वरम लग्गुप्पेतिर वारान बारामेबरिसै सिरिस हम्मस्मा मिनिच्चाणं तत्त्रो जुयाली शे सिदोजबु चरमनला
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श्रीनऽबाऊ संभवबीजय वाजय साधूनें ग
पनवरागया यौत बिनवने पनवराधी बरसे वाइसिन स्वर्गपोहता सबर मेहिं पनवसूरीगवतियसनवणं तेवासा एशिशंनवीय तत्त्रो गन्सगं न शिरिनहबाङ्गसेनू बिजय।। दसे प्रशीय दशांग धारक पापस्थित नेहरकरै नित्य करै गुरांरीसेवा इतिनंतर बानो शिष्य मिलानगरीय नि वागधरा पावहियाय नि कति ससस गुरुगो हद्द बाऊ शिसो महिलाएयू ग्गिदना मे गद्यानमा मोष तिमले इन स्थित र तप करना उसमें बादासपुरुष जिगोरी एक दिन में साहारामदराने कमल ताथीराका कविता लगेकाले सोपडिमा इंप्रियोतवं चरई । इतोऽविशरिसा गोरिल्लामसमंसपर व संगा कामयापरता बिपरी जिद्यान विवेद ने साधने देखा मद्रमिवकत्येतत्तपापी अत्यंतता सस्वजि पारे दोघा साधूने वाकवा तिसयाका ६ पाशतिसाह मद्देदा निग्धिा श्यावा तिरकस धातिब हायस काल पचा संधरूप में सर्वजण मंदिरा करीयुक्त आपसमा तिबारेमा दोचितमें इतिदेषेार्यकाल एकल दिन काल काकराने
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શ્રી મોહતલાલજી જૈત જ્ઞાતભંડાર - સુરત पो.नं. २५, प्रत नं. १०५, पत्र -८, सस्तन અંતિમ પત્ર
पडराए हिय एगनवञ्चहिएहिं बरिसा इंसेंपईनिवो जीप डि मागरावन हो ही इतनोसलसएहिं नव नवसेव एहिं बरिमेहितेऽवाणियमा बमनई समेतियमेये ४ तमिमगिता संघ सुयराशिनर क ते घडतीस मोडको संघस्तसुस्मनस्यति ६श्य जस्ान गुरुपौ बयां सो चामुला सबेरमो पाया हिरण कपंत पुणे पुणे बंदरपाए ६ विकसरि गुरुतमासं सं लेह पवनो गर्न दिन पढमकप्पे 9 इयसुयहील फप्पाय फलाफलंजा पिऊण अन्ने बिजस्म मद्देजिलब्य दचित्रोहोऽपइदियहं ।। इतिश्री बंग चूलिया एस यही लुप्पती अश्रयमूलसूत्रम्पूर्ण समम्॥ नो मुक्ति जता । फिर जो राज किया उत्तपिका रामध्यात्मालाप्