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कतिपय विशिष्टं विवेचनीय शब्द,
५८५ निद्धमण (९.४) : [देशी] खाल; मोरी; नाली; पानी जाने का रास्ता। नियत्तण (३०.२५) निवर्तन (सं.); खेत या भूमि की नाप । निययमेहुणया (२७.१५) : निजकमैथुनिका (सं.), यों, प्राकृत में प्रचलित 'नियय' और
'मेहुणया' ('मेहुणिया') · देशी शब्द हैं। 'नियय' का अर्थ मैथुन है और मेहुणिया का अर्थ है मामा की लड़की । 'अपने मातृगोत्र की' ऐसा अर्थ भी
इससे ध्वनित होता है। निव्वुसणलत्तओ (३२.१.०) निर्युषणालक्तक: (सं.); सूखा (निचोड़ा हुआ) अलता या
महावर। निव्वोदएणं (४२.४) : निव्व–णिव्व देशी] = व्याज (बहाना) या अभिप्राय के उदय
से । (अगडदत्त के मन में अपनी चहेती श्यामदत्ता को साथ ले जाने का व्याज
(अभिप्राय) उत्पन्न हो आया था : 'हियए निव्वोदएणं'।) निसीहिया (२४.१८) : निशीथिका या नैषेधिकी (सं.), स्वाध्याय-भूमि; तप के उद्देश्य से
थोड़े समय के लिए स्वीकृत स्थान; पापक्रिया का त्याग; तप के अतिरिक्त
व्यापार का निषेधक आचार। निहुओ (१२०.१२) : निभृतः (सं.), गुप्त; प्रच्छन्न ।
[प] पंचमधार (६७.१६) : घोड़े की विशेष गति; घोड़े की विशिष्ट चाल। पंडग (३९.२८) : पण्डक (सं.), नपुंसक; हिजड़ा। पउप्पय : पओप्पय (३०१.१५) : प्रपौत्रिक (सं.), वंश-परम्परा । इसका एक संस्कृत-रूप
'पदोत्पद' भी हो सकता है, जिसका अर्थ होगा : क्रम-क्रम से । पालि में इसका
अर्थापकृष्ट रूप ‘पटुप्पद' होगा, जिसका अर्थ होगा : घटने के क्रम से। पकडिओ (१०५.७) : प्रकथित: (सं.), [प्र + कश् +क्त 'कश्' शब्दे]।
[प्र + कत्य् + क्त ] पकत्थिओ = कहा; प्रंशसा की। पक्खे व (१४६.४) : प्रक्षेप (सं.), पूँजी। पच्चतो (१५४.१३) : प्रत्यय: (सं.), विश्वस्त समाचार; ज्ञेय विषय । पच्चल (२०७.२८) : [देशी] समर्थ । 'असहणसमत्यएसं पच्चलो पक्कणो चेअ।'
-'देशीनाममाला' (६६९) पडताण (६६.२९) : [देशी] जीन कसने की पेटी; घोड़े का पलान। पडिनिवेस (८९.८) : प्रतिनिवेश (सं.); दुराग्रह; अभिनिवेश। पडिवोक्खिय (६४.१२) : प्रत्युपस्कृत (सं.), सजाया गया; अच्छी तरह सुसज्जित किया
गया।