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कतिपय विशिष्ट विवेचनीय शब्द
जमगपव्वय (१७१.१२) : यमकपर्वत (सं.); मूलपाठ: 'जमगपव्वयसंसिया इव लया सुहेण वड्डया' = यमक कोई पर्वत- विशेष है, जिसपर लताएँ उसी प्रकार सुखपूर्वक, निर्बाध भाव से पल्लवित होती हैं, जिस प्रकार अलान का आश्रय पाकर वे बढ़ती हैं।
जाणुअ (१७६.१६) : ज्ञाता (सं.); जानकार; जाननेवाला । जीवा (१६९.१) : ज्या (सं.), धनुष की डोरी; प्रत्यंचा ।
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[ठ, ड ण]
ठियपडियानिमित्तं (१४०.२७) : 'स्थितिपतितानिमित्तं' (सं.); पुत्रजन्म या पुत्रविवाह - सम्बन्धी उत्सव- विशेष ('स्थितिपतिता') के निमित्त ।
डक्क (२४५.५): [ देशी ]; दष्ट (सं.), डँस लिया, डँसा हुआ। डँसने या डंक मारने की अनुध्वनि के आधार पर देशी क्रिया 'डक्को' का निर्माण हुआ है ।
हरिका या डहरिया (११.७) : छोटी; जन्म से अट्ठारह वर्ष तक की लड़की (देशी शब्द) ।
डिंडी (५१.११) : यह देशी शब्द है । सं. 'दण्डिन् ' से इसकी उत्पत्ति सम्भव है। दण्डी, अर्थात् दण्डाधिकारी । डॉ. मोतीचन्द्र ने 'डिण्डी' का अर्थ छैला किया है । द्र. 'चतुर्भाणी' ('शृंगारहाट') की भूमिका । बुधस्वामी ने 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह’ में डींग हाँकनेवाले विचित्र शस्त्रधारी आरक्षी सैनिक के अर्थ में 'डिण्डिक' का प्रयोग किया है (द्र. १८.२०२, २०८) ।
णभोग (३४४.१५) : नभोग (सं.), नभोगामी; दिव्य । मूलपाठ : 'णभोग- परिभोग' दिव्य परिभोग ।
णिएंति (१८२.१२) : निर्गच्छन्ति (सं.); बाहर निकल जाते हैं ।
णिकाइय (२४८.२१) : निकाचित (सं.); कर्मबन्ध - विशेष से आबद्ध |
णितियं (१७८.२७) : निश्चितं या नित्यं (सं.); निश्चित; नित्य ।
णेगम ( ११६.२४) : नैगम (सं.), वणिक्, व्यापारी; नगरसेठ; नगरपाल (नगर-निगम के अध्यक्ष)। इसका अन्य अर्थ है : वेद से सम्बद्ध या वेद में प्राप्य ।
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णिव्वहण (९४.१८) : निर्वहण (सं.), विवाह के अर्थ में प्रयुक्त देशी शब्द। विवाह ('णिव्वहण ') में दाम्पत्य-जीवन के निर्वाह का अर्थ निहित है ।
हाविया (९६.१) : स्नापिता: (सं.); यहाँ कथाकार ने 'ण्हाविय' का प्रयोग 'नापित' के अर्थ में किया है । यद्यपि अन्यत्र 'स्नापित' (स्नान किये हुए) के अर्थ में भी यह प्रयुक्त हुआ है । .
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तित्थ (३३४.४) : तीर्थ (सं.), यात्रास्थान, पड़ाव, प्रचलित अर्थ धर्मक्षेत्र या देवायतन ।