________________
वसुदेवहिण्डी : भाषिक और साहित्यिक तत्त्व
५४७ डॉ. कुमार विमल ने अपनी सौन्दर्यशास्त्र-विषयक पार्यन्तिक कृति ‘सौन्दर्यशास्त्र के तत्त्व' में गम्भीर साहित्यिक वैदुष्य का परिचय देते हुए सौन्दर्य, कल्पना, बिम्ब और प्रतीक पर बड़ी विशदता से विचार किया है। उनके अनुसार, कल्पना जब मूर्त रूप धारण करती है, तब बिम्बों की सृष्टि होती है और जब बिम्ब प्रतिमित या व्युत्पत्र अथवा प्रयोग के पौन:पुन्य से किसी निश्चित अर्थ में निर्धारित हो जाते हैं, तब उनसे प्रतीकों का निर्माण होता है। इस प्रकार, बिम्ब, कला-विवेचन के सन्दर्भ में कल्पना और प्रतीक का मध्यवर्ती है। बिम्ब-विधान कलाकार की अमूर्त सहजानुभूति को इन्द्रियग्राह्यता प्रदान करता है। इसलिए, उसे कल्पना का पुनरुत्पादन कहना युक्तियुक्त होगा। अर्थात्, बिम्बों की प्राप्ति कल्पना के पुनरुत्पादन से ही सम्भव है। कल्पना से यदि 'सामान्य' विचार-चित्रों की उपलब्धि होती है, तो बिम्ब से 'विशेष' चित्रों की। 'वसुदेवहिण्डी' में अनेक ऐसे कलात्मक चित्र हैं, जो अपनी विशेषता से मनोरम बिम्बों की उद्भावना करते हैं।
बिम्बों को सादृश्याश्रित रूपक तक सीमित कर उन्हें अलंकारवादियों की तरह अलंकृत उक्ति-वैचित्र्य मानना संगत नहीं है। इसलिए, सौन्दर्यशास्त्रियों की यह अवधारणा है कि कला-जगत् के बिम्ब मानव की ऐन्द्रिय अनुभूति के कलात्मक अंकन होते हैं। इसलिए, उनका सैद्धान्तिक निष्कर्ष है कि वस्तुनिष्ठता और ऐन्द्रिय बोध बिम्ब-विधान के आवश्यक तत्त्व हैं। ध्यातव्य है कि बिम्ब-विधान में सदृशता या तुलनात्मकता के तत्त्व महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। सादृश्यमूलक रूपक, उपमा या मूर्तीकरण किसी भी माध्यम से अप्रस्तुतयोजना में बिम्ब-विधान का विनियोग किया जा सकता है। अर्थात्, कल्पनाशक्ति से अप्रस्तुत को नवीन सन्दर्भ देने से बिम्ब की सृष्टि होती है। इसलिए, बिम्ब-विधान अप्रस्तुतयोजना का ही प्रतिरूप हैं। डॉ. कुमार विमल द्वारा उपस्थापित परिभाषा के अनुसार, जब कलाकार अपने अमूर्त मर्म-संवेगों की यथातथ्य अभव्यक्ति के लिए बाह्य जगत् से (आवेष्टनगत) ऐसी वस्तुओं को कला के फलक पर इस रूप में उपस्थित करता है कि हम भी उनके भावन से वैसे ही मर्म-संवेग की प्राप्ति कर सकें, जिससे कलाकार पहले ही गुजर चुका है, तब उन योजित वस्तुओं की वैसी प्रस्तुति को हम बिम्ब-विधान कहते हैं।'
बिम्ब-विंधान कला का क्रियापक्ष है और बिम्बों के कल्पना से उद्भत होने के कारण उनके विधान के समय कल्पना सतत कार्यशील रहती है। और चूँकि, कल्पना का स्मृति से घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है, इसलिए बिम्ब-विधान के निमित्त स्मृति सर्वाधिक आवश्यक है। 'वसुदेवहिण्डी' संस्मरणाश्रित मानसिक पुनर्निर्माण है, जिसमें अतीत की संवेदनात्मक अनुभूति सुरक्षित है, इसलिए अतीत-दर्शन के आधार पर निर्मित यह कथाकृति अधिक बिम्बगर्भ है । 'वसुदेवहिण्डी' में वास्तविक
और काल्पनिक दोनों प्रकार की अनुभूतियों से बिम्बों का निर्माण हुआ है। इस क्रम में कथाकार ने बिम्ब-निर्माण के कई प्रकारों का आश्रय लिया है। जैसे, कुछ बिम्ब तो दृश्य के सादृश्य के आधार पर निर्मित हैं और कुछ संवेदन की प्रतिकृति से निर्मित हुए हैं। इसी प्रकार, कतिपय बिम्ब किसी मानसिक धारणा या विचारणा से निर्मित हुए हैं, तो कुछ बिम्बों का निर्माण किसी विशेष अर्थ को द्योतित करनेवाली घटनाओं से हुआ है। पुन: कुछ बिम्ब उपमान या अप्रस्तुत से, तो कुछ प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत दोनों पक्षों पर लागू होनेवाले श्लेष से निर्मित हुए हैं। कल्पना की भाँति बिम्ब भी विभिन्न इन्द्रियों, जैसे चक्षु, घ्राण, श्रवण, स्पर्श, आस्वाद आदि से निर्मित १. सौन्दर्यशास्त्र के तत्त्व' : (वही) पृ. २०३-२०४