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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा परिश्रान्त-से प्रतीत होते थे, कमल के विना भी वह लक्ष्मी की तरह शोभा बिखेर रही थी, स्नान और प्रसाधन के विविध पात्र लिये दासियों से वह घिरी हुई थी और सफेद बारीक रेशमी चादर ओढ़े हुई थी।
इसी क्रम में वसुदेव की दो मुग्धा पलियों—संगीतकुशला भद्रमित्रा और नृत्यनिपुणा सत्यरक्षिता के उदात्त सौन्दर्य का चित्र द्रष्टव्य है : ___"जा णवुग्गयपियंगुपसूयसामा, उवचिय-सुकुमार-पसत्यचरणा, समाहिय-पसत्य-निगूढसिर-जाणु-जंघा निरंतरसंहिओरु, विच्छिन्नकडिवत्ता, गंभीरनाहिकोसा, वल्लवविहतकंतमझा, तणुय-मउयबाहुलइया, पसष्णमुही, बिंबोडी, सिणिद्ध-सियदंती, विसालधवलच्छी, संगयसवणा, सुहुम-कसणसिरया, सहावमहुरवाइणी, गंधब्बे कयपरिस्समा सां अहं सामिणो भहाए देवीए दुहिया भद्दमित्ता नाम । जा उण कणियारकेसरपिंजरच्छवी, कणयकुंडलकोडीपरिघट्टियकवोलदेसा, विकोसकमलकोमलमुही, कुवलयनयणा, कोकणयतंबाहरा, कुमुदमउलदसणा, कुसुमदामसण्णिहबाहुजुयला, कमलमउलोपमाणपयोहरा, किसोयरी, कंचणकंचिदामपडिबद्धविपुलसोणी, कयलीखंभसरिसऊरुजुयला, कुरुविंदवत्तोवमाणजंघा, कणयकुम्मोवमाणचलणा, नढे परिनिट्ठिया एसा सोमस्स पुरोहियस्स कुंदलयाए खत्तियाणीए पसूया सच्चरक्खिया नाम।" (भद्रमित्रा-सत्यरक्षितालम्भ : पृ. ३५५)
अर्थात्, जो नई खिली प्रियंगु की मंजरी जैसी श्याम वर्ण की है, जिसके पैर पुष्ट सुकुमार और प्रशस्त हैं, जिसके घुटनों और उनके नीचे के भाग-जंघाओं की संरचना प्रशस्त और निगूढ शिराओंवाली है, जिसकी दोनों जाँघे अन्तर-रहित, एक-दूसरे से सटी हुई हैं, जिसकी कमर का घेरा पतला है, नाभिकोष गहरा है, मध्यभाग त्रिवली से विभक्त और मनोरम है, बहुलताएँ लचीली और कोमल हैं, जो प्रसन्नमुखी, बिम्बोष्ठी तथा सफेद चिकने दाँतोंवाली है, जिसकी आँखें उज्ज्वल और बड़ी-बड़ी हैं, कान सलीकेदार हैं, केश पतले, मुलायम और काले हैं, स्वभाव से ही जो मधुर बोलती है और जिसने संगीत का अभ्यास किया है, वह हमारी स्वामिनी रानी भद्रा की पुत्री भद्रमित्रा है। और फिर, जो कनेर के केसर की भाँति सुनहले रंग की है, जिसके गालों पर स्वर्णकुण्डल की नोंक से घर्षण हो रहा है, जिसका मुख खिले हुए कमल की भाँति कोमल है,
आँखें नीलकमल जैसी हैं, रक्तकमल के समान जिसके लाल होंठ है, कुमुद-कली के समान दाँत हैं, फूल की माला जैसी दोनों भुजाएँ हैं, कमल की कली के समान पयोधर हैं, जो कृशोदरी है, सोने की कटिमेखला से बँधे जिसके विशाल नितम्ब हैं, जिसके ऊरुयुगल कदली के स्तम्भ के समान हैं, घुटने के नीचे का भाग कुरुविन्दावर्त की भाँति गोल है, सोने के कछुए के समान जिसके पैर हैं और जो नृत्य में निपुण है, वह सोम नामक पुरोहित की कुन्दलता नाम की क्षत्रियाणी पली से उत्पन्न पुत्री सत्यरक्षिता है। ___ कथाकार नारी-सौन्दर्य के समानान्तर पुरुष-सौन्दर्य का भी उदात्त चित्र आँकने में कुशल है। पुरुष-सौन्दर्य का एक चित्र दर्शनीय है, जो ऋषभस्वामी की शारीरिक संरचना के रूप में प्रस्तुत किया गया है :
"उसभसामी पत्तजोव्वणो य छत्तसरिससिरो, पयाहिणावत्तकसिणसिरोओ, सकलगहणायगमणोहरवयणो,, आयत्तभुमयाजुयलो, पुंडरियवियंसियनयणो, उज्जुयवयणमंडणणासावंसो, सिलप्पवालकोमलाऽऽहरो, धवलविमलदसणपती, चठरंगुलप्पमाणकंबुगीवो, पुरफलिहूदीहबाहू,