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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा मन्दरपर्वत की उत्तरवाहिनी छह महानदियों (नरकान्ता, नारीकान्ता, सुवर्णकूला, रूप्यकूला, रक्ता और रक्तवती) में अन्यतम है और स्थानांग (३.४५७) के ही अनुसार यह नदी मन्दरपर्वत के उत्तर में, शिखरी वर्षधर पर्वत के पुण्डरीक महाह्रद से प्रवाहित होनेवाली तीन महानदियों (सुवर्णकूला, रक्ता
और रक्तवती) में एक है। कथाकार संघदासगणी के संकेतानुसार, सुवर्णकूला नदी ऐरवत-क्षेत्र में अवस्थित है और इसके तटवर्ती जंगलों में हाथी प्रचुरता से पाये जाते हैं।
कथाकार द्वारा उल्लिखित हंसनदी जयपुर के पास बहती थी। कथा है कि राजा सुबाहु के दो पुत्र थे—अभग्नसेन और मेघसेन । मेघसेन बड़ा था। राजा सुबाहु ने हंसनदी को सीमा मानते हुए अपने राज्य को दो भागों में बाँटकर दोनों पुत्रों को दे दिया था। वे दोनों भाई जयपुर में रहते थे। बाद में बड़े भाई मेघसेन से उत्पीडित होने के कारण अभग्नसेन जयपुर छोड़कर शालगुहा में जाकर रहने लगा था। संकेतानुसार, यह जयपुर की सीमा के बीचो-बीच बहनेवाली नदी प्रतीत होती है।
संघदासगणी ने शीता और शीतोदा नदियों की कई बार आवृत्ति की है । यह भी आगमोक्त नदी है। 'स्थानांग' (१०.१६७) के अनुसार, इन दोनों महानदियों का मुखमूल (समुद्रप्रवेश-स्थान) दस-दस योजन गहरा है। 'स्थानांग' (६.९१-९२) में उल्लेख है कि मन्दरपर्वत की पूर्ववाहिनी शीता महानदी के दोनों तटों से मिलनेवाली छह अन्तर्नदियाँ हैं : ग्राहवती, हृदवती, पंकवती, तप्तजला, मत्तजला और उन्मत्तजला। इसी प्रकार शीतोदा महानदी में मिलनेवाली अन्तर्नदियाँ भी छह है: क्षीरोदा, सिंहस्रोता, अन्तर्वाहिनी, ऊर्मिमालिनी, फेनमालिनी और गम्भीरमालिनी।
'वसुदेवहिण्डी' में उल्लिखित अन्तस्साक्ष्य के अनुसार, शीतोद नद (शीतोदा नदी) धातकीखण्डद्वीप के पश्चिम विदेह-क्षेत्र में बहता है। इस नद के उत्तर तट पर सुवर्ग (सुवर्ण) विजय (प्रदेश) का खड्गपुर नगर बसा है, जहाँ विद्याधरों का निवास था (केतुमतीलम्भ : पृ. ३३६) । एक उल्लेख से यह ज्ञात होता है कि पुष्करद्वीप के आधे पश्चिमी भाग में शीतोदा नदी बहती है। इस नदी के दक्षिण में सलिलावती नामक विजय (प्रान्त) है। वहाँ उज्ज्वल और उन्नत प्रकारवाली बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी वीतशोका नाम की नगरी है। उस नगरी में चौदह रत्नों तथा नौ निधियों का अधिपति रत्नध्वज नाम का चक्रवर्ती राजा रहता था (तत्रैव : पृ. ३२१)।
कथाकार के संकेतानुसार, जम्बूद्वीप के महाविदेह-क्षेत्र में शीता महानदी बहती है। इस महानदी के उत्तर में पुष्कलावती नाम का विजय (प्रान्त) है। यहीं वैताढ्य नाम का पर्वत है, जहाँ विद्याधर और चारणश्रमण रहते हैं (तत्रैव)। जम्बूद्वीप के पूर्वविदेह-क्षेत्र में भी शीता महानदी बहती है, जिसके दक्षिण तटवत्ती सुभगा नगरी में राजा स्तिमितसागर की दो रानियों—वसुन्धरी
और अणुन्धरी के गर्भ से अपराजित और 'अनन्तवीर्य नाम के कुमार उत्पन्न हुए थे (तत्रैव : पृ. ३२४)। शीता महानदी के दक्षिण तट पर ही मंगलावती विजय है, जहाँ रत्नसंचयपुरी बसी हुई है। इस पुरी में राजा क्षेमंकर राज्य करता था (तत्रैव : पृ. ३२९) । रमणीय नामक प्रान्त भी पूर्वविदेह में प्रवाहित शीता नदी के दक्षिण तट पर ही बसा था. जिसकी शुभा नाम की नगरी राजा स्तिमितसागर की राजधानी थी (तत्रैव : पृ. ३३८)। धातकीखण्डद्वीप के पश्चिमविदेह-क्षेत्र के पूर्वभाग में भी शीता नदी बहती थी, जिसके दक्षिण तट पर स्थित नलिनीविजय की अशोकानगरी राजा अरिंजय की राजधानी थी (बालचन्द्रालम्भ : पृ. २६१)।