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________________ ३७२ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा रहने के कारण उसके सींग नुकीले हो गये थे और वह अपने अगले खुर से जमीन को झुंद रहा था। वह भैंसा विशालकाय था तथा वक्र दृष्टि से धम्मिल्ल की ओर देख रहा था। एक अन्य स्थल (बन्धुमतीलम्भः पृ. २६८,२७८) पर तो कथाकार ने महिष को मानवीकृत करके उसका रोचक मिथकीय चित्रण उपन्यस्त किया है । वह कामदेव सेठ का भद्रक नामक महिष था। उसे अपना जातिस्मरण हो आया था। कामदेव सेठ अपने 'वल्लभ' नामक अश्व को जो खुराक देता था, वही खुराक उसके लिए भी देता था। उसे राजा की ओर से अभयदान प्राप्त था। भद्रक जब राजकुल में प्रविष्ट हुआ। तब उसने सिर झुकाकर राजा से अभयदान माँगा था। पशुओं में इस प्रकार का आचरण देखकर राजा विस्मित होकर रह गया था। राजा ने अपने मन्त्रियों को आदेश देते हुए कहा था कि वे नगर में घोषणा करा दें: 'अभयदान-प्राप्त भद्रक भैंसे के प्रति जो अपराध करेगा, वह मृत्युदण्ड का भागी होगा, चाहे वह अपराधी राजा का ज्येष्ठ पुत्र ही क्यों न हो।' ___ इसी सन्दर्भ में कामदेव की गोशाला का भी बड़ा सूक्ष्म वर्णन कथाकार ने किया है(तत्रैवः पृ. २६९)। कामदेव सेठ उज्जयिनी के कुणालनगर (जनपद) में रहता था। वह कई करोड़ की सम्पत्ति का मालिक था। वह पुरवासियों से समादृत तथा राजा जितशत्रु का प्रतिरूप था। एक दिन वह शरद् ऋतु के प्रारम्भ में पकी हुई स्वर्णपोत बालियों के भार से झुके शालिवन तथा गुंजार करते मोद-भरे चंचल भौंरों से घिरे विकसित कमलोंवाले पद्मसर को देखता हुआ क्रम से अपनी गोशाला में पहुँचा। उस गोशाला में बछड़े खेल रहे थे और पहलौठी गायें रँभा रही थीं तथा गोपीजनों द्वारा गाये जानेवाले गीतों के सागर-गम्भीर स्वर मुखरित हो रहे थे। वहाँ भौरों के मधुर गुंजार से शब्दित, कुसुम-धवलित सप्तपर्णवृक्ष के निकट स्थित गोशाला का प्रभारी दण्डक, सेठ के पास आया और उसकी अनुमति से उसके समक्ष खड़ा रहा। तिन्दूसक वृक्षविशेष के मण्डप में जब सेठ बैठ गया, तब गोपजनों ने सेठ के लिए गोशाला के उपयुक्त, अर्थात् दुग्धदधिघृतभूयिष्ठ भोजन प्रस्तुत किया। भोजन करने के बाद कामदेव दण्डक के साथ बैठा और गाय-भैंस के बारे में बात करता. रहा। इसी क्रम में, दण्डक ने थोड़ी दूर पर चरते हुए एक भैंसे को बुलाया। दण्डक के पुकारते ही वह सेठ के पास चला आया। उस भैंसे को देखने से लोगों को भय होता था। सेठ के पास बैठे दण्डक ने कहा : “यह भैंसा बड़ा भला है। इससे डरने की कोई बात नहीं।” इसके बाद भैंसे ने अपनी जीभ निकालकर सेठ को सिर झुकाया और घुटने के बल बैठ गया। इस कथाप्रसंग से स्पष्ट है कि उस युग में, सेठों को मवेशी पालने में विशेष अभिरुचि थी। उनके द्वारा संचालित गोशाला की व्यवस्था अत्यन्त उत्तम रहती थी और वहाँ का परिवेश रमणीय और चित्ताकर्षक होता था। गायों और भैंसों को बहुत आदर की दृष्टि से देखा जाता था। गोशाला की निगरानी के लिए यद्यपि खास आदमी नियुक्त रहते थे, तथापि सेठ स्वयं भी यदा-कदा अपनी गोशाला का निरीक्षण करने जाया करता था। पशु-पालन की यह प्रथा भारतीय संस्कृति का विशेष अंग थी, इसीलिए कथाकार का, अपनी इस कथाकृति में, गोरक्षामूलक भारतीय जनजीवन के चित्रण के प्रति विशेष रुझान प्रदर्शित हुआ है। ___संघदासगणी द्वारा उपन्यस्त विभिन्न पशुओं के चित्रण के क्रम में पीठिका-प्रकरण में प्रद्युम्न की प्रज्ञप्ति द्वारा निर्मित मेष का एवं चारुदत्त की कथा में वर्णित सुवर्णद्वीपयात्रियों के बकरों का
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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