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________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा सम्प्रदायों के उल्लेख के क्रम में संघदासगणी ने चोक्ष-सम्प्रदाय' का भी उल्लेख किया है। ताम्रलिप्ति नगर के सार्थवाह महेश्वरदत्त की माता बहुला चोक्षवादिनी थी ( कथोत्पत्तिः पृ. १४) । यह चोक्ष-सम्प्रदाय ऊपर से तो शुचिता का प्रदर्शन करता था, किन्तु भीतर से माया और कपट के आचरण में आलिप्त रहता था । इसलिए, बहुला को 'उवहि-नियडिकुसला चोक्खवाइणी' कहा गया है। 'चोक्ष' स्पृश्यास्पृश्यवादी सम्प्रदाय - विशेष था । ३५२ संघदासगणी ने परम भागवत-सम्प्रदाय का भी उल्लेख किया है। अवन्ती - जनपद की उज्जयिनी नगरी का इभ्य सागरचन्द परम भागवत - दीक्षा से सम्पन्न था और भगवद्गीता के सूत्र, अर्थ और परमार्थ को जानता था । उसने अपने पुत्र समुद्रदत्त की गृहशिक्षा के लिए एक परिव्राजक को गृहशिक्षक नियुक्त किया था, क्योंकि सागरचन्द को इस बात की आशंका थी कि उसका पुत्र अन्य शालाओं में पढ़ेगा, तो पाखण्डी हो जायगा । किन्तु, विडम्बना की बात तो यह हुई कि गृहशिक्षक परिव्राजक समुद्रदत्त की माँ चन्द्रक्षी के ही साथ यौनाचार में लिप्त हो गया (धम्मिल्लहिण्डी : पृ. ५० ) । यहाँ भी कथाकार ने परमभागवत सम्प्रदाय के अनुयायियों का चरित्रापकर्षण ही दिखलाया है। इन सम्प्रदायों के अतिरिक्त संघदासगणी ने दिशाप्रोक्षी ( वानप्रस्थ संन्यासियों का सम्प्रदाय) और नास्तिकवादी सम्प्रदायों का भी उल्लेख किया है । इस प्रकार, उन्होंने ब्राह्मण और श्रमणधर्म-सम्प्रदाय के उत्कर्षापकर्ष के विविध अतिरेचक चित्र 'वसुदेवहिण्डी' में अंकित किये हैं, जिनसे तत्कालीन भारतीय सांस्कृतिक समाज का वैचित्र्यपूर्ण मानसिकता उभरकर सामने आती है I उस युग के सामान्य सांस्कृतिक जीवन के वर्णन की दृष्टि से संघदासगणी द्वारा और भी अनेक तथ्यों की उद्भावना की गई है, जिनमें कतिपय प्रमुख तथ्यों का यहाँ संक्षिप्त विवरण- विवेचन प्रासंगिक होगा । वस्त्र और अलंकरण : वस्त्र : कथाकार संघदासगणी के युग में प्रयुक्त होनेवाले वस्त्रों और अलंकरणों से तत्कालीन समृद्ध समाज का परिदर्शन होता है। कथाकार ने उस युग में व्यवहृत होनेवाले विभिन्न वस्त्रों का उल्लेख किया है। जैसे : काशिक, पट्टतूलिका, हंसलक्षण, दसिपूर क्षौमवस्त्र, कम्बलरल, देवदूष्य आदि । विवाह के पूर्व समलंकृत शरीरवाली वसुदेव- पत्नी बन्धुमती का जो चित्र कथाकार ने छायांकित किया है, उसमें तद्युगीन वस्त्रों और अलंकारों के वर्णन का एक साथ प्रतिनिधित्व हो जाता है । वर्णन इस प्रकार है : १. चोक्ष (चौक्ष, अपपाठ चैक्ष) का साधारण अर्थ पवित्रता का सूचक होता है। श्रीचन्द्रबली पाण्डे अभिनवगुप्त के मतानुसार चोक्ष का अर्थ एकायन भागवत करते हैं। चोक्ष पर टीका करते हुए अभिनवगुप्त ने कहा है : "चोक्षा भागवतविशेषा ये एकायना इति प्रसिद्धाः ।” भरत (१८ । ३४) के अनुसार चोक्ष, परिव्राजक, मुनि, शाक्य, श्रोत्रिय, शिष्ट और धार्मिकों को संस्कृत बोलना आवश्यक था। 'पद्मप्राभृतकम्' भाण में चोक्ष पवित्रक के वर्णन से पता चलता है कि आज की तरह उन दिनों भी भागवतों को छुआछूत का रोग लगा था, गोकि कभी-कभी वे वेश्यागमन से भी बाज नहीं आते थे। अमात्य विष्णुदास के वर्णन से चोक्षों के रूपं पर कुछ और अधिक प्रकाश पड़ता है। ( "एषहि वेत्रदण्डकुण्डिका भाण्डसूचितोवृषलचौक्षामात्यो विष्णुदास : 1 " —पादताडितक, २४।५) चोर्क्षे के अतिरिक्त 'चतुर्भाणी' में भागवतधर्म पर कुछ-कुछ प्रकाश पड़ता है। 'पादताडितकम्' में चोक्षोपचार, चोक्षोपायन आदि का उल्लेख भी हुआ । विशेष द्र. 'चतुर्भाणी' की मोतीचन्द्र-लिखित भूमिका, पृ. ८२ ।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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