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विषय-क्रम
प्रारम्भिकी
प्राकृत-कथासाहित्य में 'वसुदेवहिण्डी' का स्थान : १-१२
अध्ययन १
'वसुदेवहिण्डी' का स्रोत और स्वरूप : १३–७९
(क) 'वसुदेवहिण्डी' तथा 'बृहत्कथा' के विभिन्न नव्योद्भावन : २०
'वसुदेवहिण्डी' का महत्त्व: २७; 'वसुदेवहिण्डी' और 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' में विलक्षण कथासाम्य : ३१; 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' और 'वसुदेवहिण्डी' की पूर्वापरवर्त्तिता के कतिपय विचारणीय पक्ष : ३४; 'वसुदेवहिण्डी' के अतिरिक्त परवर्ती कथा - साहित्य पर गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' का प्रभाव : ३७
(ख) 'वसुदेवहिण्डी' का कथा-संक्षेप : ३८.
लोकोत्तरचरित वसुदेव का विलक्षण व्यक्तित्व : ३८; कथा-संक्षेप : (ग) कथा की ग्रथन-पद्धति : ६७
प: ४०
प्रथम ‘कथोत्पत्ति' अधिकार की कथावस्तु : ७२ ; 'धम्मिल्लचरित' की कथावस्तु : ७३; 'पीठिका' अधिकार की कथावस्तु : ७४; 'मुख' अधिकार की कथावस्तु : ७४; 'प्रतिमुख' अधिकार की कथावस्तु : ७५; 'शरीर' अधिकार की कथावस्तु : ७५; निष्कर्ष : ७६
अध्ययन: २
'वसुदेवहिण्डी' की पौराणिक कथाएँ: ८०- १५४
कथा के विभिन्न पर्याय: ८०
(क) कृष्णकथा: ८३
(ख) रामकथा : १०२
निष्कर्ष : ११२
(ग) रूढ या मिथक कथाएँ: ११३
रूढकथा और कथारूंढियाँ : ११५ – १३१; मिथक कथा : १३१