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बड़े-बूढ़े और विपुल मित्रवर्ग 'वसुदेवहिण्डी' की रोचक कथाओं को सुनकर अपने आन्तरिक आह्लाद से मुझे निरन्तर समुत्साहित करते रहे । मैं एक-एक करके सबके प्रति कृतज्ञ हूँ। __मैं अपने विद्यानुरागी जननान्तरसुहृद् डॉ. युगलकिशोर मिश्र (निदेशक : प्राकृत-जैनशास्त्र और अहिंसा शोध-संस्थान, वैशाली) की स्वतःस्फूर्त उपकार-भावना और विद्वज्जनोचित सहज अनुग्राहिता का ऋणी हूँ; क्योंकि यह शोधग्रन्थ उन्हीं की गुणज्ञता, कर्मण्यता और व्यवहारज्ञता का आशंसनीय परिणाम है । इसे प्रकाशित देखकर उन्हें उतना आह्लाद होगा, जितना मुझे भी नहीं हो सकता।
आशा है, इस शोध-ग्रन्थ से कथा-साहित्य के अध्येताओं और कलाभूयिष्ठ संस्कृति के जिज्ञासुओं को निराशा नहीं होगी । कारण, इसका लेखन केवल लीलया विततं' नहीं है । 'वसुदेवहिण्डी' एक ऐसा अनल्पगुण ज्योतिर्मय कथाग्रन्थ है, जिसपर लिखनेवाला स्वयं गुणदीप्ति से समुद्भासित हो उठेगा।
मूलतः बिहार विश्वविद्यालय (मुजफ्फरपुर) की पी-एच्. डी. उपाधि के लिए शोध-प्रबन्ध के रूप में प्रस्तुत यह शोध-ग्रन्थ विनम्रतापूर्वक, प्राच्यविद्या के जिज्ञासु विद्वज्जनों के स्वाध्याय के लिए साग्रह निवेदित है।
- श्रीरंजन सूरिदेव
पी. एन्. सिन्हा कॉलोनी भिखनापहाड़ी, पटना-८०० ००६ सन् १९९३ ई.