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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति को बृहत्कथा
योग्य है। सम्प्रति, वह अपने भाई द्रुमसेन के संरक्षण में दक्षिण में समुद्रतट पर समुद्रस्नान और देवार्चन के व्याज से दिन बिता रही है। सूचनानुसार, राम और कृष्ण समुद्रतट पर गये और द्रुमसेन का वध करके लक्षणा को साथ लेकर अपनी नगरी में लौट आये। राजा हिरण्यलोम ने, बाद में, कृष्ण के पास विपुल धन भिजवाया और विनम्र निवेदन किया कि उसका पूर्वचिन्तित मनोरथ पूरा हो गया।
अराक्षरी नगरी के राजा राष्ट्रवर्द्धन की रानी विनयवती थी। उनकी दो सन्तानें थीं : पुत्र युवराज नमुचि और पुत्री सुसीमा । एक दिन सुसीमा सुराष्ट्र देश के प्रभासतीर्थ में नमुचि के साथ स्नान करने को गई, तो उसकी सूचना गुप्तचरों ने कृष्ण को दी। कृष्ण बलराम-सहित वहाँ गये
और नमुचि का वध करके दूसरी लक्ष्मी जैसी सुसीमा को साथ लेकर यादवपुरी लौट आयें। कुलकरों ने सुसीमा का भी सत्कार किया और रहने के लिए भव्य भवन प्रदान किया।
गगननन्दन नगर के विद्याधरराज जाम्बवान् की रानी श्रीमती से उत्पन्न दो सन्तानों में पुत्र का नाम था युवराज दुष्पसह और पुत्री का नाम जाम्बवती था। आकाशचारी जैन मुनि ने घोषणा की थी कि जाम्बवती अर्द्धभरताधिपति की भार्या होगी। विद्याधरनरेश जाम्बवान् ने तदनुकूल पति की खोज में गंगातटवर्ती नगर के बाहरी प्रदेश में पड़ाव डाला । कुमारी जाम्बवती भी गंगास्नान करने वहाँ अपने परिवार के साथ बराबर आती थी, जिसकी सूचना एक विद्याधर ने कृष्ण को दी। कृष्ण अनाधृष्टि (एक अन्तकृत् = उसी जन्म में मोक्ष पानेवाले मुनि) के साथ वहाँ पहुँचे । गंगा के बालुका-तट पर क्रीड़ा करती हुई जाम्बवती कृष्ण के रूप को देखकर मूर्छित हो गई। तभी कृष्ण ने उसका अपहरण कर लिया। राजा जाम्बवान् को सूचना मिलने पर वह रुष्ट हो उठा
और स्वयं 3. अनाधृष्टि से युद्ध करने को तैयार हो गया। अनाधृष्टि ने राजा को समझाया : “तुम कृष्ण के प्रभाव को नहीं जानते । तुम्हें तो स्वयं अपनी पुत्री को ले जाकर उन्हें अर्पित करना चाहिए। यदि उन्होंने स्वयं हरण कर लिया, तो इससे बढ़कर और उत्तम बात क्या हो सकती है?" राजा ने कृष्ण से कहा : “मेरा अभिप्राय तो केवल आकाशचारी मुनि के आदेश को प्रमाणित करना था। अब मैं तपोवन जाता हूँ। आप दुषसह का अनुपालन करेंगे। मेरे अज्ञताजनित अतिक्रमण को क्षमा करें।” कृष्ण जाम्बवती को लेकर द्वारवती लौट आये।
यादवो ने सपत्नीक कृष्ण का स्वागत किया। कुमार दुष्पसह जाम्बवती के लिए विपुल धन और परिचारिकाएँ लेकर आया और राम (बलदेव) तथा कृष्ण को अपनी प्रणति निवेदित की। उन्होंने दुष्षसह का बन्धु-व्यवहार से सत्कार किया। उसके बाद वह अपने नगर गगननन्दन लौट गया। आवास के निमित्त प्रदत्त भव्य भवन में जाम्बवती कृष्ण के साथ विहार करने लगी।
वैष्णवपुराणों में प्राप्त कृष्ण द्वारा रुक्मिणी-हरण की कथा बहुविदित है। किन्तु, 'वसुदेवहिण्डी' में वर्णित रुक्मिणी-हरण की कथा में पुरुषार्थप्रिय कृष्ण की युद्धवीरता का एक नया स्वरूप उभरकर सामने आया है। कथोपकथन के माध्यम से कथासन्दर्भ या विषयवस्तु की सूचना देने में निपुण संघदासगणी ने अतिशय लोकप्रिय रुक्मिणीहरण-विषयक कृष्णकथा को जैनाम्नाय के साँचे में ढालकर पुनर्नवीकृत किया है। जैनदृष्टि की लोकवादी परम्परा में रुक्मिणी-हरण की कथा का संरचना-शिल्प कृष्णकथा की प्रचलित विषयवस्तु के सन्दर्भ में, पुराणेतिहास के अधीतियों के लिए चिन्तन का अभिनव आयाम प्रस्तुत