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२. डॉ. भण्डारकर का मत (९९६-११४७ ई.)
डॉ. आर. जी. भण्डारकर १८९४ ई. में बम्बई से प्रकाशित अपनी 'रिपोर्ट आन दी सर्च फार मैनुस्क्रिप्ट्स इन दी बाम्बे प्रेसीडेंसी ड्यूरिंग दी इयर्स १८८४-८५, १८८५-८६ तथा १८८६-८७' के पृ. १९-२० पर दिगम्बर जैन कवि धनञ्जय के काव्य की दो प्रतियों का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि प्रथम भाग के अन्तिम पद्य में कर्त्ता को कवि कहा गया है । इसी पद्य में अकलङ्कदेव के प्रमाणशास्त्र, पूज्यपाद अर्थात् देवनन्दि के लक्षणशास्त्र (व्याकरण) और धनञ्जय कवि के काव्य (द्विसन्धान) को तीन अपश्चिम रत्न कहा गया है।' उन्होंने इसी कथन के आधार पर संस्कृतकोष (नाममाला) के रचयिता को द्विसन्धान का रचयिता स्वीकार किया । वे वर्धमान (११४७ ई.) कृत गणरत्नमहोदधि र विशेषत: एगलिंग संस्करण में उद्धृत द्विसन्धान का भी उल्लेख करते हैं । उनके अनुसार जैनाचार्यों ने ब्राह्मण लोक-साहित्य का अनुकरण किया है, अतएव यह कल्पना निरर्थक नहीं होगी कि धनञ्जय ने राघवपाण्डवीय की कथा की प्रेरणा ब्राह्मण कवि कविराज से ली हो । कविराज का समय धाराधीश मुंज के पश्चात् होना चाहिए, क्योंकि उन्होंने अपने संरक्षक जयन्तीपुरी के कामदेव की तुलना मुंज (मृत्यु ९९६ ई.) से की है । अत: भण्डारकर कविराज और धनञ्जय को ९९६ और ११४७ ई. के मध्य मानते हैं । उनका कथन है कि यदि अनुकरण की कल्पना सत्य मानी जाए, तो कविराज अवस्था में धनञ्जय से बड़े होने चाहिएं ।
डॉ. भण्डारकर के मत की समीक्षा
सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना
ए.एन. उपाध्ये के अनुसार भण्डारकर का यह कथन कि जैनाचार्यों ने अपने कथा-साहित्य में ब्राह्मण कथा-साहित्य का अनुकरण किया, एक सामान्य कथन के रूप में ही स्वीकार्य है । यदि अनुकरण की कल्पना सत्य मानी जाए तो इस वाक्यांश के आधार पर कहा जा सकता है कि भण्डारकर उपर्युक्त तथ्य के प्रति विशेष आग्रही नहीं है । यदि अनुकरण का उपर्युक्त तथ्य स्वीकार भी किया जाए, तो धनञ्जय के समक्ष दण्डी का द्विसन्धान रहा होगा, कविराज का नहीं । भण्डारकर का यह निष्कर्ष कि कविराज मुंज (९९६ ई.) के उत्तरवर्ती और धनञ्जय के पूर्ववर्ती रहे
१.
धनञ्जयनाममाला, २०१
२.
गणरत्नमहोदधि,४.६, १०.५७, १८.२२
३. वही (एगलिंग संस्करण), पृ. ९७, ४०९, ४३५