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द्वितीय अध्याय
महाकवि धनञ्जय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
संस्कृत साहित्य में धनञ्जय नाम के दो आचार्य प्रसिद्ध हुए हैं। इनमें से एक, महामुनि भरत की परम्परा में हुए हैं। इनके पिता का नाम विष्णु था । ये मालव के परमारवंशीय राजा मुंज (वाक्पतिराज द्वितीय, अमोघवर्ष, पृथ्वीवल्लभ, श्रीवल्लभ) की राज्यसभा में कवि थे। मुंज की राजधानी उज्जैन थी । वाक्पतिराज द्वितीय के उपलब्ध शिलालेखों से प्रतीत होता है कि धनञ्जय ९७४-७९ ई. के मध्य हुए और ९९४ ई. तक रहे। इनकी प्रसिद्ध कृति दशरूपक है । द्वितीय धनञ्जय दिगम्बर जैन-सम्प्रदाय के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् थे । यही धनञ्जय द्विसन्धान-महाकाव्य के लेखक थे तथा प्रस्तुत ग्रन्थ में इन्हीं धनञ्जय के विषय में विचार करना अभीष्ट है ।
धनञ्जय का काल
धनञ्जय ने स्वयं अपने विषय में अपनी किसी भी कृति में कोई विशेष जानकारी नहीं दी । किन्तु, पाठक, भण्डारकर, राघवाचारियर, वेंकटसुब्बइया, विंटरनित्ज़, कीथ, कृष्णमाचारियर प्रभृति साहित्यिक इतिहासकारों ने धनञ्जय तथा उनके द्विसन्धान-महाकाव्य के विषय में अपने अध्ययन द्वारा विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की है । धनञ्जय के काल से सम्बद्ध इनके मतों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार ही
(१) डॉ. के. बी. पाठक का मत (११२३-११४०ई.)
तेर्दाळ् के एक कनड़ी अभिलेख का सम्पादन करते समय डॉ. पाठक ने पैंतीसवीं पंक्ति में निर्दिष्ट श्रुतकीर्ति त्रैविद्य का कन्नड़ कवि अभिनवपम्प (नागचन्द्र)
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डॉ. श्रीनिवासशास्त्रीः दशरूपक की भूमिका, मेरठ,१९७६,पृ.१३-१४