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सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना बाहुबलिचरित (८) तेजपाल कृत सम्भवणाहचरित (९) महीन्द्र कृत सान्तिणाहचरिउ (१०) जयमित्र हल्ल कृत बड्वमाणक्व्वु ।
इन काव्यों में महाकाव्यत्व और प्राचीनता की दृष्टि से वीर कवि का जम्बूस्वामीचरिउ और हरिभद्र का णेमिणाहचरिउ ही विशेष महत्त्व के हैं। जम्बूस्वामीचरिउ में अन्तिम केवली जम्बू-स्वामी का जीवनचरित ११ सन्धियों में वर्णित है। कवि ने प्रत्येक सन्धि की पुष्पिका में इसे शृङ्गार-वीर-महाकाव्य कहा है। इसके अतिरिक्त इस महाकाव्य में धर्मकथा, महाकाव्य और रोमांचक कथा–तीनों के गुणों का सुन्दर सामंजस्य हुआ है । यह अपभ्रंश में अपने ढंग का अनूठा काव्य है, क्योंकि इसमें पौराणिक और रोमांचक दोनों शैलियों का प्रयोग हुआ है। ___हरिभद्र के णेमिणाहचरिउ को 'जैसलमेरीय भाण्डागारीय ग्रन्थानां सूची' में प्राकृतापभ्रंश भाषा निबद्ध कहा गया है, किन्तु जैकोबी इसे अपभ्रंश का ग्रंथ मानते हैं । यह अपभ्रंश के काव्यों में विशिष्ट और क्लिष्ट काव्य है । इसमें बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के नौ भवों का वर्णन किया गया है। (२) ऐतिहासिक शैली के महाकाव्य
इतिहास, ऐतिहासिक महाकाव्य और ऐतिहासिक शैली के महाकाव्य-इन तीनों में अन्तर है । इतिहास तो पृथक् शास्त्र है । ऐतिहासिक महाकाव्य वे हैं, जिनका कथानक इतिहास से लिया गया है और जिनका घटनाक्रम भी इतिहास सम्मत होता है, पर जिनकी शैली शास्त्रीय महाकाव्य की होती है अर्थात् वस्तु-व्यापार-वर्णन, अलंकृत शैली, पात्रों की विविध मनोदशाओं का रागात्मक चित्रण, काव्य-रूढ़ियों का निर्वाह आदि बातें उनमें होती हैं । ऐसे महाकाव्य वस्तुत: शास्त्रीय महाकाव्यों की कोटि में ही आते हैं। परन्तु वे काव्य जिनका लक्ष्य इतिहास-क्रम या चरित-नायक के जीवनवृत्त का सीधा वर्णन कर देना ही रहता है और साथ ही जिनमें काल्पनिक घटनाओं और पात्रों का मनमाना उपयोग भी किया जाता है, ऐतिहासिक शैली के महाकाव्य कहे जा सकते हैं ।२ पौराणिक शैली की भाँति यह शैली भी १. परमानन्द जैन शास्त्री : अपभ्रंश भाषा का जम्बूसामिचरित और महाकवि वीर (प्रेमी
अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ.४३९); रामसिंह तोमर : अपभ्रंश का एक श्रृंगार वीर काव्य,वीर
कृत जम्बूस्वामीचरित (अनेकान्त, अक्टूबर,१९४८,पृ.३९४) २. (a) "But while the geneology beyond one or two
generations is often amiably invented and exaggerated