________________
१४
सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना दोनों में आदिकालीन भारतीय संस्कृति और इतिहास का मर्म सम्पूर्ण रूप में व्यक्त हुआ है और भारतीय इतिहास का आदिकाल उनमें अपनी समूची ज्ञान-राशि और यथार्थ तथा बहमुखी जीवन-व्यापारों को अभिव्यक्त कर सका है। इनमें भारत के आदिकालीन इतिहास का एक लम्बा युग इस कारण प्रतिबिम्बित होता है कि ये किसी विशेष कवि और सीमित अवधि वाले युग की रचनाएं नहीं हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि ये दोनों इलियड, ओडेसी जैसे भारत के आदि-विकसनशील महाकाव्य हैं। जैनानुमोदित विकसनशील महाकाव्य
जैन परम्परा में भी पुराण-पुरुषों की मौलिक गाथाएं प्रचलित रही हैं । इन महापुरुषों के सम्यक् चरित्रों में उपलब्ध वीरतापूर्ण गाथाओं, जैन धर्म एवं दर्शन आदि तत्त्वों ने जैन महाकाव्यों को वर्णनात्मक शैली प्रदान की । प्रथमानुयोग अथवा धर्मकथानुयोग सूत्र-साहित्य में त्रिषष्टिशलाकापुरुषों के चरितों के माध्यम से आख्यानों की रनचाएं प्रारम्भ हुईं । जैन परम्परा में प्राचीन आख्यान पुराण संज्ञा से अभिहित किये गये हैं। दिगम्बर-परम्परा में एक शलाकापुरुष का वर्णन करने वाले आख्यान को पुराण कहा जाता है, यथा-रविषेण कृत पद्मपुराण। श्वेताम्बर-परम्परा में त्रिषष्टिशलाकापुरुषों के चरित का वर्णन करने वाले आख्यान को भी पुराण कहा जाता है, यथा-हेमचन्द्र कृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ।३ पुराणों की विषयवस्तु काप्राय: धर्म के साथ प्रगाढ़ सम्बन्ध होता है। इसी कारणवश जैन-परम्परा में पुराण-कथा अन्य काव्यों या महाकाव्यों की अपेक्षा अधिक सत्य एवं प्रामाणिक मानी जाती है।
जैन पुराण यद्यपि पुराणोचित वैशिष्ट्य से युक्त हैं, तथापि वे (अलंकृत) महाकाव्य-शैली से बहुत प्रभावित हैं। हेमन्चन्द्र ने तो अपने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित पुराण को महाकाव्य संज्ञा से अभिहित भी किया है। इसके अतिरिक्त दिगम्बर तथा श्वेताम्बर परम्परा के अनेक पुराण महाकाव्योचित सामग्री से विशेषत: प्रभावित हैं। परवर्ती अलंकृत-जैन चरितकाव्यों में निबद्ध अधिकांश शलाकापुरुषों के चरित जैन पुराणों से ही अनुप्रेरित हैं। अतएव १. 'पुरातनं पुराणं स्यात्',आदिपुराण,१.२१ २. नेमिचन्द्र शास्त्री : आदिपुराण में प्रतिपादित भारत,वाराणसी,१९६८,पृ.१८ ३. डॉ.मोहनचन्द :जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज,दिल्ली,१९८९,पृ.४०