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सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना
और वर्तमान आर्य भाषाओं का विकास हुआ और उनमें भी विविध विकसनशील तथा अलंकृत महाकाव्यों की रचना हुई ।
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सामन्त-युग में ही 'प्रारम्भिक वीर - युग' (Heroic Age) तथा 'सामन्ती वीर-युग' (Age of Shivelary ) भी दिखायी देते हैं जिनमें विकसनशील महाकाव्य विकसित हुए ।' ये वीर-युग आदिम समाज व्यवस्था तथा सभ्य समाज व्यवस्था के अन्तराल का काल है । प्रारम्भिक वीर युग में योद्धाओं और वीरों की पृथक् श्रेणी बन गयी तथा राजतन्त्र व सामन्ततन्त्र की स्थापना हुई । युद्धों में शौर्य प्रदर्शित करने और विजय दिलाने वाला व्यक्ति कबीले का नेता या सरदार बनने लगा । इस युग में यद्यपि व्यक्तिगत वीरता को महत्त्व दिया जाता है, पर वीर व्यक्ति समाज की भावनाओं और शक्ति का प्रतिनिधित्व भी करता है । अभिप्राय यह है कि प्रारम्भिक वीर-युग में सरदार या राजा जातीय गुणों और आकांक्षाओं का प्रतीक होता है । वह समाज का नायक और संचालक होता है और उसके सम्मान में रचित काव्य या आख्यान समाज की सम्पत्ति बन जाते हैं, जिनसे निजन्धरी कथाओं और विकसनशील महाकाव्यों का विकास होता है। इसके विपरीत सामन्ती वीर-युग में राजाओं के पारस्परिक युद्ध समाज के लिये नहीं वरन् अपने लिये होते हैं । - सामन्त या सम्राट्, समाज या जाति की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते, यद्यपि उनमें भी वीरता की कमी नहीं होती। इसी युग में, शौर्यपूर्ण गाथाओं के माध्यम से कई शताब्दियों तक केवल मौखिक गाथाओं के रूप में संशोधित, सम्पादित व परिवर्धित होने के पश्चात् विकसनशील महाकाव्य वर्णनात्मक शैली के माध्यम से महाकाव्य के वर्तमान स्वरूप को प्राप्त होते हैं । इसीलिये ये महाकाव्य काव्यप-सौष्ठव के प्रति उदासीन रहकर सामाजिक मूल्यों के प्रति सजग रहते हैं ।
वीर-युग विश्व के विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न कालों में रहा है। इसी वीर-युग में यूरोप के ‘इलियड' (Iliad), 'ओडेसी' (Odyasey), 'बियोवुल्फ' (Beowulf) आदि विकसनशील महाकाव्य विकसित हुए । २ 'निबेलुंगेनलीड'
१. हिन्दी साहित्य कोश, भाग १, पृ. ५८० तथा Ker, W. P. : Epic and Romance, New York, 1957, pp. 4-6.
Ker, W.P. : Epic and Romance, New York, 1957, pp. 13-14.
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