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(४) गाथाचक्र (Ballad Cycle) -
मौखिक काव्य रूप लोकगाथाओं में कुछ गाथाएँ इतनी लोकप्रिय होती हैं। कि वे विभिन्न स्थानों और जातियों में प्रचलित हो जाती हैं । प्रचलित होने के बाद स्थान और काल भेद से उनमें विविध प्रकार के संशोधन और परिवर्धन होने लगते हैं। इसी प्रक्रिया के कारण कोई भी लोकगाथा विभिन्न स्थानों में विविध रूपों में विकसित हो जाती है । मोल्टन ने अपने ग्रन्थ 'वर्ल्ड लिटरेचर' में लिखा है कि लिखित काव्य तो स्थिर हो जाता है, किन्तु मौखिक काव्य वायु में तैरता रहता है और प्रत्येक गाने वाला किसी न किसी गाथा का नया संस्करण तैयार कर देता है । १ गाथाओं के नवीन संस्करण प्रमुख पात्रों की समानता के कारण कालान्तर में पुन: एक होने लगते हैं । वीरों और सांस्कृतिक पुरुषों के चरित से सम्बन्धित गाथाओं में प्राय: ऐसा देखने में आता है कि इनके गायक अपनी सुविधानुसार किसी भी गाथा में अन्य गाथाओं की कुछ भी बातें मिला देते थे । इनमें जो अधिक लोकप्रिय और प्रभावशाली गाथा होती थी, उसमें अन्य गाथाएं अन्तर्भूत हो जाती थीं । इस गुम्फन-क्रिया में लोक की अपेक्षा चारणों और गायकों का योगदान अधिक रहता था । यह ध्यातव्य है कि गाथाचक्र काव्य नहीं, अपितु काव्य या महाकाव्य की पूर्वावस्था है । ३
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सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना
गाथा-चक्र मुख्यरूपेण तीन प्रकार के होते थे – (१) वीर - भावना - प्रधान, (२) रोमांचक तत्त्वों से युक्त प्रेम - भावना - प्रधान और (३) लोक-विश्वासों और निजन्धरी पात्रों से सम्बन्धित तथा धर्म - भावना - प्रधान । इन तीन प्रकार के गाथाचक्रों
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"Oral poetry is a floating literature because apart from writing that gives fixity, each delivering of a poem becomes a fresh edition.", Molton : World Literature, p.102.
डॉ. शम्भूनाथ सिंह: हिन्दी महाकाव्य का स्वरूप विकास, वाराणसी, १९६२, पृ.१०-११ “Such a heroic cycle, it will be understood, in not a poem but a state of poetry. . . The cycle has now the chance of growing into an organic epic.", Molton : World Literature, p. 103.