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सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना अधिकारी सेना के साथ चलते थे, द्विसन्धान में राम अथवा बलराम का काले हाथी पर चढ़कर सेना के साथ चलने का वर्णन है। चतरंगिणी सेना के प्रयाण पर नेमिचन्द्र ने अपनी टीका में उसका क्रम हस्ति सेना, अश्व सेना, रथ सेना तथा पदाति सेना रखा है। सेना के साथ राजपरिवारों की स्त्रियाँ भी युद्ध में जाती थीं तथा सैनिक भी अपनी स्त्रियों को युद्ध में साथ ले जाते थे।३।
सैनिकों तथा घोड़ों आदि को विश्राम देने के लिये मार्ग में शिविर लगाये जाते थे। इन शिविरों में राजा वन पंक्तियों के पीछे तथा सैनिक दम्पत्ति गुफाओं में विश्राम करते थे। इस प्रकार राजा तथा सेना को प्राकृतिक वन प्रदेशों में दाम्पत्य सुख भोगने की पूरी सुविधा मिल जाती थी। इन अवसरों पर द्विसन्धान में आये वर्णनों के अनुसार राजा तथा सैन्य समूह वन-विहार तथा सलिल-क्रीडा का आनन्दोपभोग भी करते थे।
शिविरों में ठहरे हुए सैन्य पशुओं का भी विशेष ध्यान रखा जाता था। द्विसन्धान में हाथियों के जलाशय में स्नान का वर्णन है । इसी प्रकार अश्वसेना भी जल-स्नान एवं पृथ्वी पर लोट लगाने आदि क्रियाओं से सन्तुष्ट हो जाती थी। जब हाथी, घोड़े तृप्त हो जाते थे, तब हाथियों को पेड़ों के तनों से तथा घोड़ों को पट्टमय अस्तबलों में बाँध दिया जाता था। आयुध
द्विसन्धान-महाकाव्य में अनेक आयुधों का उल्लेख हुआ है, जिन्हें घमासान युद्ध में प्रयोग किया जाता था । डॉ. मोहनचन्द ने इन आयुधों को दो भागों में विभक्त किया है
१. द्विस.,१४६ २. द्रष्टव्य - वही,१४७ पर पद-कौमुदी टीका ३. वही,१४.४७ ४. वही,१४.३८ ५. वही,१५.१ ६. वही,१४३६ ७. वही,१४.३७ ८. वही,१४.३८ ९. डॉ.मोहन चन्दःजैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज,पृ.१६९