________________
२२२
सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना
प्राप्त होता है । यदि राजा अपने पराक्रम से सामन्त राजा की रक्षार्थ उद्यम करे या उसकी रक्षा करे तो सामन्त राजा उसे धन इत्यादि के अतिरिक्त अपनी पुत्री भी पत्नी रूप में प्रदान कर देता था ।२ द्विसन्धान-महाकाव्य के अनुसार सामन्त राजाओं के संघ भी होते हैं । ३
राजा के गुण, कर्तव्य और उत्तरदायित्व
द्विसन्धान-महाकाव्य के अनुसार राजा को काम, क्रोध, मान, लोभ, हर्ष और मद - इन छ: प्रकार के शत्रुओं पर विजयी होना चाहिए । राजा के आदर्श गुणों के सन्दर्भ में धनञ्जय राजा की निम्नलिखित योग्यताओं का होना आवश्यक समझते
हैं
१. वीरता और शत्रुसंहार - शक्ति ।
२. इन्द्रियजयी, व्यसन - सेवनरहित - आचार |
३. परोपकार-वृत्ति– स्वामी, सखा और गुरुजन के रूप में व्यवहार । ६
सभी शास्त्रकारों ने राजा के प्रधान कर्तव्य के रूप में 'प्रजा-रक्षण' को स्वीकार किया है । महाभारत के अनुसार सातों राजशास्त्रप्रणेताओं ने राजा के लिये प्रजा-रक्षण सबसे बड़ा धर्म माना है । ७ मनु' तथा कालिदास' भी इस मन्तव्य का उल्लेख करते हैं । सामान्यत: प्रजा-रक्षण से अभिप्राय है - चोरों, डाकुओं आदि के आन्तरिक आक्रमणों तथा बाह्य शत्रुओं से प्रजा के प्राण एवं सम्पत्ति की रक्षा करना । १° द्विसन्धान- महाकाव्य में भी इसी प्रकार राजा के उच्च आदर्श प्रतिपादित
१. द्विस, १८.१३६
२.
३.
४.
५.
६.
द्रष्टव्य—वही, ९.५२
'न नाम प्रतिसामन्तं त्रेसुः के संघवृत्तयः ।', वही, १८.१४४
द्रष्टव्य - द्विस, २.११ पर पद कौमुदी टीका, पृ. २७
वही, २.१०
तु - नेमिचन्द्र शास्त्रीः संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ. ५२२
महाभारत, शान्तिपर्व, ६८. १-४
७.
८. मनुस्मृति, ७.१४४
९. रघुवंश, १४.६७
१०. 'बृहस्पतिः । तत्प्रजापालनं प्रोक्तं त्रिविधन्यायवेदिभिः । परचक्राच्चौरभयाद् बलिनो न्यायवर्तिनः ॥