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द्विसन्धान-महाकाव्य का सांस्कृतिक परिशीलन (४) आरण्य- भील आदि जंगली जातियों की सेना । (५) दुर्ग- दुर्ग में रहकर लड़ने वाली सेना, जो प्राय: पर्वतीय जातियों से निर्मित होती थी। (६) मित्र - सामन्त अर्थात् मित्र राजाओं की सेना ।३ त्रिविध-शक्तियाँ
महाभारत में उत्साह, प्रभु और मन्त्र-इन त्रिविध शक्तियों का उल्लेख हुआ है। कौटिल्य ने इन शक्तियों को क्रमश: विक्रम बल, कोश-दण्ड-बल और ज्ञान बल कहा है ।५ कामन्दकनीतिसार में इनको अधिक स्पष्ट करते हुए कहा गया है -षाड्गुण्य आदि का सम्यक् प्रकार से नीतिनिर्धारण मन्त्र-शक्ति',कोष एवं सैन्य शक्ति 'प्रभु-शक्ति' तथा विजिगीषु राजा की साम्राज्य-प्रसार के लिये प्रकट की गयी पराक्रमपूर्ण क्रियाशीलता उत्साह-शक्ति' है । इन त्रिविध-शक्तियों से सम्पन्न : राजा सदैव विजयी होता है।६ द्विसन्धान-महाकाव्य में इन शक्तियों की समीचीनता तथा इनका उपयोग करने पर बल दिया गया है। टीकाकार नेमिचन्द्र ने इन शक्तियों को 'स्वपरज्ञानविधायी' कहकर इन्हें राजाओं के लिये 'विभूतिहेतु' माना
१. 'आरण्यमाटविकम्',द्विस,२.११ पर पद-कौमुदी टीका,पृ.२७.
तु.-डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्रीः संस्कृत काव्य के,पृ.५३२ २. 'दुर्ग धूलिकोट्टपर्वतादि',द्विस,२.११ पर पद-कौमुदी टीका,पृ.२७
तु.- डॉ.नेमिचन्द्र शास्त्री : संस्कृत काव्य के,,पृ.५३२. ३. 'मित्रं सौहृदम्',द्विस,२.११ पर पद-कौमुदी टीका,पृ.२७
तु:- डॉ.नेमिचन्द्र शास्त्री : संस्कृत काव्य के.,पृ.५३२. _ 'उत्साहप्रभुशक्तिभ्यां मन्त्रशक्त्या च भारत ।
उपपन्नो नृपो यायाद् विपरीतं च वर्जयेत् ॥',महाभारत,आश्रमवासिकपर्व,७६ 'शक्तिस्त्रिविधा- ज्ञानबलं मन्त्रशक्तिः,कोशदण्डबलं प्रभुशक्तिः,विक्रमबलमुत्साहशक्तिः ।',अर्थशास्त्र,६.२ (पृ.५४३) 'मन्त्रस्य शक्ति सुनयोपचारं सुकोशदण्डो प्रभुशक्तिमाहुः। उत्साहशक्ति बलवद्विचेष्टां त्रिशक्तियुक्तो भवतीह जेता ॥', कामन्दकनीतिसार,
१५.३२ ७. 'अनारतं तिसृषु सतीषु शक्तिषु त्रिवर्यपि व्यभिचरति स्म न स्वयम् ।',द्विस.,२.१४