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सन्धान-कवि धनञ्जय अर्थालङ्कारों को भी सन्धान काव्य हेतु महत्वशाली मानते हैं । उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति आदि अर्थालङ्कारों के प्रयोग से द्विसन्धान-महाकाव्य का अर्थ- गाम्भीर्य विशेष रूप से चमत्कृत एवं सुसज्जित हुआ है । फलत: द्विसन्धान-महाकाव्य को अलङ्कार - प्रधान महाकाव्य की संज्ञा दी जा सकती है।
अलङ्कार-विन्यास