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________________ १९४ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य चेतना विरोध न होकर विरोध का आभास मात्र हो, वहीं इस अलङ्कार की स्थिति होती है। विरोध अलङ्कार के लिये आवश्यक माना गया है कि विरोध के नियोजन में उसके परिहार के लिये भी स्थान रहे । द्विसन्धान में विरोध का विन्यास इस प्रकार हुआ अजरोऽवनिवृत्तचेष्टितस्ततपङ्कोद्भवविष्टरागतः । स पितामहतां च सङ्गतो विधिरप्येकमुखत्वमागमत् ।। प्रस्तुत पद्य का अर्थ है–समस्त पृथ्वी पर शासन चलाने तथा महान् अपकार्यों में रत लोगों को विनाश करने के कारण वह राम अथवा युधिष्ठिर युवक होते हुए भी पितामह (ब्रह्मा) हो गये थे तथा ब्रह्मा भी एकमुख हो गये थे । इस अर्थ के अनुसार यहाँ दो विरोध स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहे हैं—प्रथम, यदि राम अथवा युधिष्ठर ब्रह्मा हुए तो उन्हें चतुर्मुख होना चाहिए तथा द्वितीय, ब्रह्मा कूटस्थ होने के कारण वृद्ध नहीं होते, पृथ्वी की सृष्टि के लिये प्रयत्नशील रहते हैं, विकसित पंकजरूपी आसन पर बैठते हैं, संसार के पिता या गुरु हैं और विष्णु आदि देवों की संगति में रहते हैं, तो वे एकमुख कैसे हो सकते हैं । यहाँ इन विरोधों के नियोजन के साथ ही इनके परिहार के लिये पर्याप्त स्थान है। यदि इस पद्य का 'अज-र: अव-निवृत्तचेष्टित: ततपङ्कोद्भव-विष्टराग-त: पिता-महतां संगत: च विधि: एकमुखत्वं आगमत् ।' इत्यादि अन्वय होने पर उक्त दोनों विरोधों का परिहार हो जाता है एवं अर्थ निकलता है- परमात्मा की स्तुति में लीन, सब ओर से इन्द्रियों के व्यापारों का संकोचकर्ता, अनादि पापों की परम्परा से उत्पन्न विशाल मोह का विनाशक, पिता के आनन्द का प्रशस्त निमित्त और निर्माण का कर्ता वह राम अथवा युधिष्ठिर सत्य वचन बोलने के लिये कटिबद्ध था। इस प्रकार द्विसन्धान में विरोधालङ्कार का सफल विन्यास हुआ है। १५. विषम यदि कार्य और कारण के गुण या क्रियाएं परस्पर विरुद्ध हों अथवा आरम्भ किया हुआ कार्य तो पूरा न हो, प्रत्युत कुछ अनर्थ आ पड़े, यद्वा दो विरूप पदार्थों का मेल हो तो वहाँ विषम अलङ्कार होता है । इस प्रकार का अलङ्कार विरोधमूलक है। द्विसन्धान-महाकाव्य में इसका विन्यास इस प्रकार हुआ है१. द्विस.,४३२ २. सा.द.,१०७०-७१
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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