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सन्धान - कवि धनञ्जय की काव्य चेतना
यहाँ सूर्य व चन्द्रमा परिभ्रमण कर सृष्टि को आह्लादित करते हैं- इस उपमान से दशरथ अथवा पाण्डु राजधानी में रहकर ही गुप्तचरों के माध्यम से संसार का निग्रह करते हैं - इस उपमेय का ज्ञान होता है, अतः अतिशयोक्ति है ।
७. दीपक
पदार्थों में एक धर्म का सम्बन्ध हो अथवा अनेक क्रियाओं का एक ही कारक हो, वहाँ दीपक अलङ्कार होता है । ' द्विसन्धान में यह निम्न रूप में विन्यस्त हुआ है
चतुर्दशद्वन्द्वसमानदेहः सर्वेषु शास्त्रेषु कृतावतारः ।
गुणाधिकः प्रश्रयभङ्गभीरुः पितुः कथञ्चिद्गुरुतां ललङ्गे ॥२
यहाँ ‘चतुर्दशद्वन्द्वसमानदेहः', 'सर्वेषु शास्त्रेषु कृतावतारः ’, ‘गुणाधिकः' तथा ‘प्रश्रयभङ्गभीरुः’ आदि अनेक गुणों का आधार एकमात्र राजपुत्र ही है, अत: दीपक अलङ्कार है।
८. दृष्टान्त
सामान्यतः दृष्टान्त का अर्थ 'उदाहरण' से लिया जाता है । इसमें किसी बात को कहकर उसकी पुष्टि के लिये तत्सदृश अन्य बात कही जाती है। इसमें दो वाक्य होते हैं - एक उपमेय वाक्य तथा दूसरा उपमान वाक्य । दोनों के साधारण धर्म भिन्न होते हैं, किन्तु दोनों में बिम्ब- प्रतिबिम्ब जान पड़ता है या एक प्रकार का सादृश्य दिखायी पड़ता है । द्विसन्धान-महाकाव्य में इसका विन्यास इस प्रकार हुआ है
हस्तच्युते गते क्वापि कीदृशोऽप्यनुशेरते । साम्राज्यमूलेऽतीतेऽपि तादवस्थ्यं ययौ रिपुः ॥४
यहाँ बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव से उपनिबद्ध उपमेय वाक्य में शत्रु की सामर्थ्य रूप विशेष अर्थ को साम्राज्यमूल हस्ति - अश्व- पदाति रूप के विनाश से उत्पन्न
१. 'अप्रस्तुतप्रस्तुतयोर्दीपकं तु निगद्यते ।
अथ कारकमेकं स्यादनेकासु क्रियासु चेत् ॥', सा. द, १०.४९ २. द्विस, ३.३३
३. 'द्रष्टान्तस्तु सधर्मस्य वस्तुनः प्रतिबिम्बनम् ।', सा.द., १०.५१ ४. द्विस., १८.८१