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सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य चेतना
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प्रस्तुत पद्य में उल्लेखनीय बात यह है कि यह पद्य सन्धान-कवि की ऐसी मौलिक प्रतिभा का परिचय देता है, जिससे कि वह इस पद्य में मुरज बन्ध के अतिरिक्त शरयन्त्र बन्ध तथा गोमूत्रिका का भी सफल निबन्धन कर पाया है। ५. गूढ चित्र
संस्कृत काव्यशास्त्र में क्रिया, कारक, सम्बन्ध, पाद, अभिप्राय तथा वस्तु को गोपन का आधार बनाकर छ: प्रकार के गढ़ चित्रों का विवेचन किया गया है। द्विसन्धान-महाकाव्य में कवि ने पादगूढ़ का सफल विन्यास किया है। पादगूढ़ से अभिप्राय है- अन्य पादगत वणों के मध्य किसी एक पाद के अक्षरों का गुप्त रहना । द्विसन्धान में इस पादगूढ़ का विन्यास निम्न प्रकार से किया गया है
स प्रभाविक्रमं भूमे: कामुको नमयन् परान् । वामोऽथ चक्रं वक्रोऽरिः प्रमुमोच न विक्रमम् ॥
१. सर.कण्ठा.,२.१३५ २. अलंकार-मणिहार,भाग ४,पृ.२३४ ३. द्विस.,१८७३