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रस-परिपाक
११९ पर रखी हुई भेरी की ध्वनि, नगाड़े की आवाज को सुनकर समस्त सैनिक स्वयंस्फूर्त हो उठे । फलस्वरूप सभी परमानन्दित तथा रोमाञ्चपूरित हो गये । इस प्रकार के भावों से उनके हृदय से राग आदि भावों का लोप हो गया और सामने आये शत्रुओं को देखकर वे क्रोध की अनुभूति से आप्लावित हो उठेस्कन्धस्था मदकरिण: प्रयाणभेरी
दध्वान प्रतिसमयं निहन्यमाना। अत्युच्चं पदमधिरोप्य मान्यमारान्
न्यक्कारं क इह परैः कृतं सहेत । आरावं दिशि दिशि तं निशम्य तस्या
रोमाञ्चैः परिहषितैस्तनुपाणाम् । अम्भोदप्रथमरवोत्थरत्नसूचिः संरेजे
स्वयमिव सा विदूरभूमिः॥ रागादेः सह वसतोऽपि तापवृत्तेर्यः
स्वस्मिन्नवधिरहो न कस्यचित्सः । भूपानां रिपुमभिपश्यतामिवोग्रं
यत्कोपे स्फुरति रसान्तरं न जज्ञे ॥१. यहाँ सैनिकों के हृदय में उत्साह' स्थायी भाव है । शत्रु-पक्ष आलम्बन तथा राम/कृष्ण आश्रय है । युद्ध-भेरी का घोष तथा नगाड़े की ध्वनि उद्दीपन विभाव हैं। प्रयाण-भेरी सुनकर सैनिकों का परमान्दित होना तथा शरीर का रोमाञ्चित होना अनुभाव हैं। गर्व, आवेग, औत्सुक्य, हर्ष आदि व्यभिचारी भाव हैं। इस प्रकार सैन्य-प्रयाण जनित ‘उत्साह' की भव्य निदर्शना यहाँ प्रस्तुत हुई है। युद्ध-वर्णन
धनञ्जय ने युद्ध-भूमि में योद्धाओं के क्रिया-कलापों से सम्बद्ध अपने ज्ञान का प्रदर्शन भी किया है। उसने अपने विशिष्ट काव्यात्मक ओज के साथ वर्णन किया है कि किस प्रकार खर-दूषण/कौरवों के विरुद्ध राम-लक्ष्मण/भीम-अर्जुन का युद्ध लक्ष्य-निर्धारण तथा मन की एकाग्रता में ऋषियों की समाधि' से समानता १. द्विस.१४.२-४