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सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना शलाकापुरुष', विद्याधर, किन्नर आदि अतिप्राकृत शक्तियों तथा लक्ष्मण द्वारा कोटिशिला-उद्धरण जैसे आलौकिक दृश्यों का चित्रण किया गया है । रुद्रट की मान्यता के अनुरूप इस महाकाव्य में अलौकिक तथा अतिप्राकृत कार्य मानव द्वारा सम्पादित न दिखाकर देवता, गन्धर्व, राक्षस आदि द्वारा सम्पादित दिखाये गये हैं। उदाहरणत: आकाशमार्ग से सीता का अपहरण करके भागना विद्याधरों के राजा या राक्षसराज रावण द्वारा सम्पादित दिखाया गया है। इसी प्रकार कोटिशिला का उद्धरण शलाकापुरुष अथवा परमपुरुष आठवें विष्णु लक्ष्मण द्वारा किया गया है । ८. आरम्भ
महाकाव्य का आरम्भ किस प्रकार किया जाए-इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम दण्डी ने विचार किया है। उनके अनुसार महाकाव्य के आदि में आशीर्वचन, नमस्क्रिया तथा वस्तुनिर्देश का निर्देश होना चाहिए। द्विसन्धान-महाकाव्य का आरम्भ आशीर्वचन, नमस्क्रिया तथा वस्तुनिर्देश के निर्देश द्वारा ही हआ है। प्रथम सर्ग के सर्वप्रथम पद्य में पाठकों के प्रति शुभेच्छा के प्राकट्य द्वारा आशीर्वचन का, द्वितीय पद्य में सर्वज्ञ की वाणी (दिव्य-ध्वनि) सरस्वती सम वनदेवी के प्रति नमस्क्रिया का, तदनन्तर तृतीय से अष्टम पद्य पर्यन्त वस्तु-निर्देश का निर्देश किया गया है।
रुद्रट महाकाव्य के आरम्भ में सन्नगरी-वर्णन तथा नायक के वंश की प्रशंसा आवश्यक समझते हैं। द्विसन्धान-महाकाव्य के आरम्भ में सन्नगरी-वर्णन तथा नायक के वंश की प्रशंसा–दोनों तत्व दृष्टिगोचर होते हैं। इसके प्रथम सर्ग में
१. द्विस.,१.८ २. वही,१४७ ३. वही,१.१०,७.५ ४. वही,सर्ग १२ ५. वही,७.९३ ६. वही,सर्ग १२ ७. 'आशीर्नमस्क्रियावस्तुनिर्देशो वाऽपि तन्मुखम् ॥',काव्या,१.१४ ८. तत्रोत्पाद्ये पूर्व सन्नगरीवर्णनं महाकाव्ये ।
कुर्वीत तदनु तस्यां नायकवंशप्रशंसा च ॥', का.रु.,१६.७