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________________ द्विसन्धान-महाकाव्य का सन्धानात्मक शिल्प-विधान ६. यादवराघवीयम् इसकी रचना वेंकटाध्वरिन् (१७वीं शताब्दी का प्रारम्भ) ने की है। यह गतप्रत्यागत शैली का द्विसन्धानकाव्य है । इसके प्रत्येक पद्य को एक ओर से पढने पर रामायण की कथा तथा प्रतिलोम पाठ करने पर भागवत कथा अभिव्यक्त होती ७. पार्वतीरुक्मिणीयम् इस काव्य में शिव तथा पार्वती, कृष्ण और रुक्मिणी की विवाह-कथाएं अभिनिबद्ध हैं। यह विद्यामाधव की रचना है। वह चालुक्य राजा सोमदेव (११२६-११३८ ई.) का आश्रित कवि था। यह सोमदेव सम्भवत: कल्याण का सोमेश्वर चतुर्थ ही था। ८. राघवयादवीयम् सोमेश्वर (लगभग १५२४ ई.) कृत इस महाकाव्य में राम और कृष्ण की कथाएं उपनिबद्ध हैं । १५ सर्ग के इस काव्य में कालिदास तथा भारवि के उन पदों का प्रयोग किया गया है, जिनका चयन अमरकोश के लिये भी हुआ है । ९. नल-हरिश्चन्द्रीयम् यह महाकाव्य किसी अज्ञातनामा कवि की गतप्रत्यागत शैली की रचना है । इसको एक ओर से पढ़ने पर नल-कथा तथा विपरीत क्रम से पढ़ने पर हरिश्चन्द्र की कथा निकलती है। १०. हरिश्चन्द्रोदय यह अनन्तसूरि कृत २० सर्ग का महाकाव्य है। इसमें पौराणिक राजा हरिश्चन्द्र तथा कवि के आश्रयदाता राजा हरिश्चन्द्र के चरित उपनिबद्ध हैं । इस प्रकार द्विसन्धान-महाकाव्य द्वारा रामायण एवं महाभारत की कथा को आधार बनाकर महाकाव्य लिखने का प्रयोग परवर्ती काल में बहुत लोकप्रिय होता १. कृष्णमाचारियर,एम.: हिस्ट्री आफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर, पृ.१९० २. वही ३. वही,पृ.१९१ ४. वही,पृ.१९४ ५. वही
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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