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काव्य कर्ता का परिचय इस 'कीर्तिकल्लोलकाव्य' की रचनाको देखते हुए किसी प्रौढ कलमसे लिखा हुआ प्रतीत होता है । पर जब देखते सूनते हैं तब तो यह वर्णन १८ वर्ष की उम्रवाले पूज्य मुनिराजने लिखा है, तब आश्चर्य होने लगता है । सचमुच यह आपकी प्रथम कृति होने पर भी इसकी प्रासादिक रचना छंदोवैविध्य अलंकारों की जमावट देखते हुए आशास्पद मालुम होती है । ___ इस काव्य के ऐसे निर्माता के जीवन विषय में हमने झांकी की तो प्रतीत हुआ कि, यह बालमुनि श्री हेमचन्द्रविजयजी का जन्म गुजरात की पुण्यभूमि पर भरूच जिला का जंबूसर गाँव के निकटवर्ती 'अणखी' गाँव में वि.सं. १९९३ के पोष सुदि १५ मंगलवार को हुआ था । इनके पिता का नाम हीराभाई जो दीपचंद शेठ के पुत्र हैं और माता का नाम है प्रभावती देवी मातापिताने पुत्र का नाम हसमुख रक्खा । शा. हीराभाई व्यापार निमित्त अपने जन्मभूमि से साबरमती गाँव में आकर रहते थे । संस्कारी मातापिता का सुसंस्कार पुत्र के ऊपर पड़ने लगा और उस संस्कार की प्रवृत्ति प्रतिदिन द्विगुणित बढ़ने लगी।
भाई हसमुख अपने बड़े बहन भाई इन्दुबेन एवं धनसुख के साथ विनोद करता हुआ बढ़ने लगा । मातापिता की प्रेरणा पूर्वजन्म का संस्कार और पू. साधु महाराजों के उपदेशसे भाई हसमुख के हृदयमें धार्मिक भावना का सञ्चार हुआ । सं. २००२ में शास्त्रविशारद कविरत्न पूज्य आ. श्री विजयामृतसूरीश्वरजी म., और पू. मुनिराज श्री देवविजयजी म. आदि का चातुर्मास साबरमतीमें हुआ । तब भाई हसमुख उनके पास धार्मिक अभ्यास करने जाया करता था । जब कि २००३ में शासनसम्राट् पूज्यपाद आ.म. श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी म. आदि चातुर्मास के लिये साबरमती (रामनगर) पधारे, उस समय शासनसम्राट् के प्रशिष्य पू. मुनिराज
विविध हैम रचना समुच्चय
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