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श्री राणकपुरजीनी पुनः प्रतिष्ठा
पू. शासन सम्राट श्रीजीनी आ तीर्थनी अद्भुत रीते प्रतिष्ठा करवानी अभिलाषा हती. पण कालनी विचित्र गतिए ते इच्छा अपूर्ण ज राखी, अंते तेओश्रीना पट्टालंकार सिद्धान्तवाचस्पति पू.आ.म. श्री विजयोदयसूरीश्वरजी म., न्यायवाचस्पति पू.आ.म. श्री नन्दनसूरीश्वरजी म., समयज्ञ पू.आ.म. श्री विज्ञानसूरीश्वरजी म., तथा प्राकृतविशारद पू.आ.म. श्री कस्तूरसूरिजी म. पोताना शिष्य प्रशिष्यादिपरिवार सहित सादडी श्री संघ तथा श्री आणंदजी कल्याणजी पेढीना आग्रहथी अहिं पधार्या. अने तेओना पवित्र हस्ते श्री राणकपुरजी तीर्थमां प्रतिष्ठानी मांगलिक क्रियाओ करवामां आवी. महोत्सवमां अनेक गच्छना, अनेक समुदायना साधु-साध्वी महाराजनो आशरे ३५०नो परिवार पधार्यो हतो. जेमां पं. श्री विकाशविजयजी म. आदि (पू.आ.श्री वल्लभसूरिजी म.ना) मुनि श्री प्रद्योतनविजयजी म. आदि (पू. आ. श्री प्रेमसूरिजी म.ना) मुनिराज श्री दर्शनविजयजी म. त्रिपुटी आदि मुनिश्री दर्शनविजयजी म. आदि (आ. श्री भक्तिसूरिजी म.ना) मुनि श्री कान्ति सागरजी (खरतरगच्छी) वगेरे वगेरे हता. तेमज लाख जेटली मानव मेदनी एकत्रित थई हती. मालवा, मेवाड-काठियावाड, गुजरात, महाराष्ट्र, कच्छ आदि दूर देशोथी मोटो जनसमुदाय प्रतिष्ठा-महोत्सव जोवा राणकपुरमां आव्यो हतो. अहिंनुं प्राकृतिक सौन्दर्य निहाली सौ कोई घणां ज आनन्दित बन्यां हता. आ महोत्सव एक महामहोत्सवरूपे हतो. महोत्सवने सफल बनाववा सादडी श्री संघनी पूर्ण जहेमत हती अने आ. क. पेढीनो सारो साथ हतो. तेओए आवा जंगलमां पण करेली सुन्दर सगवडता जोई भलभला दिङ्मूढ बनी गया हता. धनाढ्य लोको पण तंबु अने कंताननी ओरडीओमां बंगला करतां विशेष आनन्दनो अनुभव करता. ते समये अहिं कीडीनी माफक मानव महेरामण उभरायो हतो. कंताननी ओरडीनी वात तो दूर रही परन्तु बेसवा जेटली जग्या जो मली जती तो पण लोको पोताने भाग्यशाली समजता.
श्रीकीर्तिकल्लोलकाव्यम्
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