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[श्रीउत्तराध्ययन सूत्र
जहा लाहो तहा लोहो,
लाहा लोहो पवड्डइ । दोमासकयं कज,
कोडीए वि न निट्टियं ॥ १७ ॥ नो रक्खसीसु गिज्झेजा,
गंडवच्छासु ऽणेगचित्तासु । जाओ पुरिसं पलोभित्ता,
खेल्लंति जहा व दासेहिं ॥ १८ ॥ नारीसु नोवगिज्झेजा,
इत्थी विष्पजहेज अणगारे । धम्मं च पेसलं नच्चा,
तत्थ ठवेज भिक्खू अप्पारणं ।।१९।। इअ एस धम्मे अक्खाए,
कविलेणं च विसुद्धपन्नणं । तरिहिंति जे उ काहिंति,
तेहिं पाराहिया दुबे लोगा ॥२०।। त्ति बेमि।। ॥ काविलीयं अट्ठमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ अह नवमं नमिपव्यज्जा अज्झयणं ।। चइऊण देवलोगाओ, उववन्नो माणुसंमि लोगंमि । उवसन्तमोहणिजो, सरइ पोरणियं जाइं ॥१॥ जाई सरित्तु भयवं. सयंसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्त ठवित्तु रज्जे. अभिणिक्खमइ नमी राया ॥ २ ॥ से देवलोगल रिसे, अन्नेउरवरगयो वरे भोए । . भुजित्तु नमी राया, बुद्धो भोगे परिचयइ ॥ ३ ॥ मिहिलं सपुरजणवयं, बलमोरोहं च परियणं । चिंच्चा अभिनिक्खन्तो एगन्तमहिढीओ भयवं ॥४॥