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[ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र
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पिंडोल एव्व दुस्सीले नरगाओ न मुच्चइ । भिक्वार वा गिहत्थे वा, सुवए कम्मइ दिवं ॥ २२ ॥ श्रगारिस माइयंगाणि, सड्ढी का एग फासए । पोसहं दुहओ पक्खं, एगरायं न हावए ॥ २३ ॥ एवं सिक्वासमावन्ने, गिहवासे वि सुव्वए । मुच्चइ छविपञ्चाश्रो, गच्छे जक्वसलोगयं ॥ २४ ॥ अह जे संडे भिक्खू, दोराहं अन्नयरे सिया | सव्वदुक्खपहीणे वा, देवे वावि महिड्ढीए ॥ २५ ॥ उत्तराई विमोहाई, जुई मन्ताणुध्वसो । समाइराई जक्खेहिं, श्रावासाइं जसंसिणो ॥ २६ ॥ दीहाउ इडिटमन्ता, समिद्धा कामरूविणो । अहुणोववन्नसंकासा, भुजो अचिमालिप्पभा ॥ २७ ॥ ताणि ठाणाणि गच्छति,
सिक्खित्ता संजयं तवं । भिक्खाए वा गिहत्थे वा
जे संति परिनिव्बुडा ॥ २८ ॥ तेसिं सोच्या सपुजाणं, संजयारा वसीमओ । न संतसंति मरणंते, सीलवंता बहुस्सुया ॥ २६ ॥ तुलिया विसेसमादाय, दयाधम्मस्स खंतिए । विपसीएज मेहात्री, तहाभूएस अध्पणा ३० ॥ तो काले अभिए, सड्ढी तालिसमंतिए । विणएज लोमहरिसं, भेयं देहस्त कंखए ॥ ३१ ॥ अह कालम्मि संपत्ते, घायाय समुस्लयं । सकाममरणं मरइ, तिराहमन्नयरं मुणी ॥ ३२ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ इइ काममरणिज्जं पंचमं भयणं समत्तं ॥
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१. दितिमंता ।