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दसवे । लियसुत्तं
सो चेव ऊ तस्स अमूहभावो फलं व कीयस्स वहाय होइ ।। १ ।। जे यावि मंदित्ति गुरुं विइत्ता
डहरे इमे अपए त्ति नच्चा । हीलति मिच्छं पडिवज्जमाणा
करंति श्रसायण ते गुरूणं ॥ २ ॥ पगईए मन्दा वि भवति एगे
डहरा वि य जे सुयबुद्धोववेया । श्रयारमंता गुणसुट्टियप्पा
जे हीलिया सिहिरिव भास कुज्जा ॥ ३ ॥ जे यावि नाग डहरं ति नच्चा आलायर से अहियाय होइ । एवायरियं पि हु हीलयंतो
अज्भयम ६-१
नियच्छइ जाइपहं खु मन्दे । ४ ।। श्रासीविसा यावि परं सुरुट्ठो
किं जीवनासाउ परं नु कुज्जा । आयरियपाया पुरण अप्पसन्ना
बोहि श्रसायण नत्थि मोक्खो ॥ ५ ॥ जो पावगं जलियमवक्कमेज्जा
सविसंवाविहु कोवएज्जा । जो वा विसं खायइ जीवियट्ठी
एसोवमाssसायण्या गुरूणं ॥ ६ ॥ सिया हु से पावय नो डहेज्जा
सीविसो वा कुविओो न भक्खे | सिया विसं हालहलं न मारे
न यावि मोक्खो गुरुहीलगाए ॥ ७ ॥